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आगम सूत्र ७, अंगसूत्र-७, 'उपासकदशा'
अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-८-महाशतक सूत्र-४८
आर्य सुधर्मा ने कहा-जम्बू ! उस काल-उस समय-राजगृह नगर था । गुणशील चैत्य था । श्रेणिक राजा था । राजगृह नगर में महाशतक गाथापति था । वह समृद्धिशाली था, वैभव आदि में आनन्द की तरह था । केवल इतना अन्तर था, उसकी आठ करोड़ कांस्य-परिमित स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थी, आठ करोड़ कांस्य-परिमित स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थी, आठ करोड़ कांस्य-परिमित स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव में लगी थीं। उसके आठ व्रज-गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं । महाशतक के रेवती आदि तेरह रूपवती पत्नीयाँ थीं । अहीनप्रतिपूर्ण यावत् सुन्दर थी । महाशतक की पत्नी रेवती के पास अपने पीहर से प्राप्त आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं तथा दस-दस हजार गायों के आठ गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में थे । बाकी बारह पत्नों के पास उनके पीहर से प्राप्त एक-एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं तथा दस-दस हजार गायों का एक-एक गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में था। सूत्र - ४९
उस समय भगवान महावीर का राजगृह में पदार्पण हुआ । परीषद् जुड़ी । महाशतक आनन्द की तरह भगवान की सेवा में गया । उसने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । केवल इतना अन्तर था, महाशतक ने परिग्रह के रूप में आठ-आठ करोड़ कांस्य-परिमित स्वर्ण-मुद्राएं निधान आदि में रखने की तथा गोकुल रखने की मर्यादा की। रेवती आदि तेरह पत्नीयों के सिवाय अवशेष मैथुन-सेवन का परित्याग किया । एक विशेष अभिग्रह लिया-मैं प्रतिदिन लेन-देन में दो द्रोण-परिमाण कांस्य-परिमित स्वर्ण-मुद्राओं की सीमा रलूँगा । तब महाशतक, जो जीव, अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त कर चूका था, श्रमणोपासक हो गया । धार्मिक जीवन जीने लगा । श्रमण भगवान महावीर अन्य जनपदों में विहार कर गए। सूत्र -५०
एक दिन आधी रात के समय गाथापति महाशतक की पत्नी रेवती के मन में, जब वह अपने पारिवारिक विषयों की चिन्ता में जग रही थी, यों विचार उठा-मैं इन अपनी बारह, सौतों के विघ्न के कारण अपने पति श्रमणो-पासक महाशतक के साथ मनुष्य-जीवन के विपुल विषय-सुख भोग नहीं पा रही हूँ । अतः मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं इन बारह सौतों की अग्नि-प्रयोग, शस्त्र-प्रयोग या विष-प्रयोग द्वारा जान ले लँ । इस
लूँ । इससे इनकी एकएक करोड स्वर्ण-मद्राएं और एक-एक गोकल मुझे सहज ही प्राप्त हो जाएगा । मैं महाशतक के साथ मनुष्यजीवन के विपुल विषय-सुख भोगती रहूँगी । यों विचार कर वह अपनी बारह सौतों को मारने के लिए अनुकूल अवसर, सूनापन एवं एकान्त की शोध में रहने लगी।
एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती ने अनुकूल पाकर अपनी बारह सौतों में से छह को शस्त्र-प्रयोग द्वारा और छह को विष-प्रयोग द्वारा मार डाला । यों अपनी बारह सौतों को मार कर उनकी पीहर से प्राप्त एक-एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं तथा एक-एक गोकुल स्वयं प्राप्त कर लिया और वह श्रमणोपासक महाशतक के साथ विपुल भोग भोगती हुई रहने लगी । गाथापति की पत्नी रेवती मांस-भक्षण में लोलुप, आसक्त, लुब्ध तथा तत्पर रहती। वह लोहे की सलाख पर सेके हुए, घी आदि में तले हुए तथा आग पर भूने हुए बहुत प्रकार के मांस एवं सुरा, मधु, मेरक, मद्य, सीधु व प्रसन्न नामक मदिराओं का आस्वादन करती, मजा लेती, छक कर सेवन करती। सूत्र - ५१
एक बार राजगृह नगर में अमारि-की घोषणा हुई। गाथापति की पत्नी रेवती ने, जो मांस में लोलुप एवं आसक्त थी, अपने पीहर के नौकरों को बुलाया और उनसे कहा-तुम मेरे पीहर के गोकुलों में से प्रतिदिन दो-दो बछड़े मारकर मुझे ला दिया करो । पीहर के नौकरों ने गाथापति की पत्नी रेवती के कथन को 'जैसी आज्ञा' कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया तथा वे उसके पीहर के गोकुलों में से हर रोज सवेरे दो बछड़े लाने लगी।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उपासकदशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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