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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-१७ - उद्देशक-८ सूत्र - ७११
भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक-रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं...इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार अप्कायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिए । रत्नप्रभापृथ्वी के अप्कायिक जीवों के उत्पाद के समान यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के अप्कायिक जीवों तक का यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१७ - उद्देशक-९ सूत्र - ७१२
भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि-वलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं...इत्यादि प्रश्न । गौतम ! शेष सभी पूर्ववत् । जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक-पृथ्वीयों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक जीवों का उत्पाद अधःसप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिए । भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१७ - उद्देशक-१० सूत्र-७१३
भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए । विशेषता यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा-वेदनासमुद्घात यावत् वैक्रियसमुद्घात । वे वायुकायिक जीव मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत हो कर देश से समुद्घात करते हैं, इत्यादि सब पूर्ववत् यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में समुद्घात कर...। वायुकायिक जीवों का उत्पाद ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१७ - उद्देशक-११ सूत्र - ७१४
भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए । जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों का उत्पाद सातों नरकपृथ्वीयों में कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के वायुकायिक जीवों का उत्पाद अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१७ - उद्देशक-१२ सूत्र-७१५
भगवन् ! क्या सभी एकेन्द्रिय जीव समान आहार वाले हैं ? सभी समान शरीर वाले हैं इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! प्रथम शतक के द्वीतिय उद्देशकमें पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के विषयमें कहना।
भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएं कही गई है ? गौतम ! चार लेश्याएं कही गई है। यथा-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या।
भगवन् ! कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव तेजोलेश्या वाले हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों में कौन अल्प ऋद्धि वाला है और कौन महाऋद्धि वाला है ? गौतम ! द्वीपकुमारों की ऋद्धि मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
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