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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक हुआ अवगाहन करे तथा स्वयं मैंने इसमें अवगाहन किया है, ऐसा अनुभव करे तथा इस प्रकार का स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को देखता हुआ देखे, तथा तरता हुआ पार कर ले, एवं मैंने इसे स्वयं पार किया है, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महा-भवन देखता हुआ देखे, उसमें प्रविष्ट होता हुआ प्रवेश करे तथा मैं इसमें प्रविष्ट हो गया हूँ, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हो तो, वह उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महान् विमान को देखता हुआ देखता है, उस पर चढ़ता हुआ चढ़ता है, तथा मैं इस पर चढ़ गया हूँ. ऐसा स्वयं अनुभव करता है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत होता है, तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध-बुद्धमुक्त हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। सूत्र - ६८१ भगवन् ! कोई व्यक्ति यदि कोष्ठपुटों यावत् केतकीपुटों को खोले हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाता है और अनुकूल हवा चलती हो तो क्या उसका गन्ध बहता है अथवा कोष्ठपुट यावत् केतकीपुट वायु में बहता है? गौतम ! कोष्ठपुट यावत् केतकीपुट नहीं बहते, किन्तु घ्राण-सहगामी गन्धगुणोपेत पुद्गल बहते हैं । हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-७ सूत्र - ६८२ भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का । प्रज्ञापनासूत्र का उपयोग पद तथा पश्यत्तापद कहना हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-८ सूत्र-६८३ भगवन् ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है । इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवे शतक अनुसार कहना। ___भगवन् ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश भी हैं। वहाँ जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है । इत्यादि सब भंग दसवें शतक में कथित आग्नेयी दिशा अनुसार जानना । विशेषता यह है कि बहुत देशों के विषय में अनिन्द्रियों से सम्बन्धित प्रथम भंग नहीं कहना, तथा वहाँ जो अरूपी अजीव हैं, वे छह प्रकार के कहे गए हैं । वहाँ काल नहीं है। भगवन् ! क्या लोक के दक्षिणी चरमान्त में जीव हैं? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार पश्चिमी और उत्तरी चरमान्त समझना। भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय का एक देश है, अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रियों के देश हैं । इस प्रकार बीच के भंग को छोड़कर द्विकसंयोगी सभी भंग यावत् पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए । यहाँ जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के प्रदेश, अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश तथा द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं । इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग यावत् पंचेन्द्रियों तक कहना । दशवें शतक में कथित तमादिशा अनुसार यहाँ पर अजीवों को कहना । भगवन् ! क्या लोक के अधस्तन चरमान्त में जीव हैं ? गौतम मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 90
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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