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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक कदाचित् कल्योज हैं । इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणियाँ जानो। ऊर्ध्व और अधो लम्बी अलोकाकाश श्रेणियाँ भी इसी प्रकार हैं किन्तु ये कल्योज रूप नहीं है, शेष पूर्ववत् । सूत्र-८७६ भगवन् ! श्रेणियाँ कितनी कही है ? गौतम ! सात यथा-ऋज्वायता, एकतोवक्रा, उभयतोवक्रा, एकतःखा, उतयतःखा, चक्रवाल और अर्द्धचक्रवाल । भगवन् ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? गौतम ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनश्रेणि होती है, विश्रेणि गति नहीं होती । भन्ते । द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनश्रेणि होती है या विश्रेणि? पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त जानना । भगवन् ! नैरयिकों की गति अनुश्रेणी होती है या विश्रेणि? गौतम! पर्ववत । इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त जानना। सूत्र-८७७ भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे हैं ? गौतम ! तीस लाख इत्यादि प्रथम शतक के पाँचवे उद्देशक अनुसार यावत् अनुत्तर-विमान तक जानना। सूत्र-८७८ भगवन् ! गणिपिटक कितने प्रकार का है ? गौतम ! बारह-अंगरूप है । यथा-आचारांग यावत् दृष्टिवाद । भगवन् ! आचारांग किसे कहते हैं ? आचारांग-सूत्र में श्रमण-निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर-विधि आदि चारित्र-धर्म की प्ररूपणा की गई है। नन्दीसूत्र के अनुसार सभी अंगसूत्रों का वर्णन जानना चाहिए, यावत्सूत्र-८७९ सर्वप्रथम सूत्र का अर्थ । दूसरे में नियुक्तिमिश्रित अर्थ और तीसरे में सम्पूर्ण अर्थ का कथन करना चाहिए। यह अनुयोग की विधि है। सूत्र-८८० भगवन् ! नैरयिक यावत् देव और सिद्ध इन पाँचों गतियों के जीवों में कौन जीव किन से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता-पद के अनुसार तथा आठ गतियों के समुदाय का भी अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहवक्तव्यता-पद के अनुसार औधिक पद कहना चाहिए। सकायिक जीवों का अल्पबहुत्व भी औधिक पद के अनुसार जानना चाहिए । भगवन् ! इन जीवों और पुद्गलों, यावत् सर्वपर्यायों में कौन, किससे अल्प, बहत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! बहु वक्तव्यता पद अनुसार जानना । भगवन् ! आयुकर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? गौतम ! बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत्-आयुकर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं तक कहना चाहिए। शतक-२५ - उद्देशक-४ सूत्र-८८१ भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा-कृतयुग्म यावत् कल्योज । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है। भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं । यथा-कृतयुग्म यावत् कल्योज । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? पूर्ववत् जानो । इसी प्रकार यावत् वायुकायिक पर्यन्त जानना । भगवन् ! वनस्पतिकायिकों में कितने युग्म कहे हैं ? गौतम ! वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! उपपात की अपेक्षा ऐसा कहा है । द्वीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान है । इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए । सिद्धों का कथन मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 183
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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