________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-२४ - उद्देशक-२२ सूत्र-८५८
भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यंचयोनिकों से ? (गौतम !) नागकुमार-उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए । भगवन् ! अंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वालों में । शेष नागकुमार-उद्देशक अनुसार जानना, यावत् कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक गमनागमन करता है। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न होता है, तो नागकुमार के दूसरे गमक में कही हई वक्तव्यता जानना।
यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्ववत् । स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए । संवेध-जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक गमनागमन करता है । मध्य के तीन गमक नागकुमार के तीन मध्य गमकों के समान कहने चाहिए। अन्तिम तीन गमक भी नागकुमार-उद्देशक अनुसार कहने चाहिए । विशेष यह कि स्थिति और संवेध भिन्न-भिन्न जानना चाहिए । संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों की वक्तव्यता भी उसी प्रकार जाननी चाहिए । विशेष यह कि स्थिति और अनुबन्ध भिन्न है तथा संवेध, दोनों की स्थिति को मिलाकर कहना।
यदि वे (वाणव्यन्तर देव), मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो उनकी वक्तव्यता नागकुमार-उद्देशक अनुसार असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों के समान कहनी चाहिए। विशेष यह है कि तीसरे गमक में स्थिति जघन्य एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए। अवगाहना जघन्य एक गाऊ की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। शेष पूर्ववत् । इनका संवेध इसी उद्देशक में जैसे असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच अनुसार कहना चाहिए। जिस प्रकार नागकुमार-उद्देशक में कहा गया है, उसी प्रकार संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों की वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु वाणव्यन्तर देवों की स्थिति और संवेध उससे भिन्न जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२४ - उद्देशक-२३ सूत्र-८५९
भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत्-वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं । भगवन् ! यदि वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात-वर्ष से ? गौतम ! वे संख्यातवर्ष की और असंख्यातवर्ष की आयु वाले से उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक, कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की । शेष असुरकुमार-उद्देशक के अनुसार जानना । विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दो आठवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम । यदि वह, जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवे भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है, इत्यादि कहना चाहिए । विशेष यह कि कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो यही कहना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 172