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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक का निवर्त्तना काल है। उससे तैजस-पुद्गलपरिवर्त्त-निर्वर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है। उससे औदारिक-पुद्गल परिवर्त्तनिर्वर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है और उससे आन-प्राण-पुदगलपरिवर्त्त-निवर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है । उससे मनः-पुद गलपरिवर्त्त-निर्वर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है । उससे वचन-पुद्गलपरिवर्त्त-निर्वर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है और उससे वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त्त का निवर्त्तनाकाल अनन्तगुणा है। सूत्र- ५४१
भगवन् ! औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त (से लेकर), आन-प्राण-पुद्गलपरिवर्त्त में कौन पुद्गलपरिवर्त्त किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त्त हैं । उनसे वचन-पुद्गलपरिवर्त्त अनन्त-गुणे होते हैं, उनसे मनः-पुद्गलपरिवर्त्त अनन्तगुणे हैं, उनसे आन-प्राण-पुद्गलपरिवर्त्त अनन्तगुणे हैं । उनसे औदारिक-पुद् गलपरिवर्त्त अनन्तगुणे हैं, उनसे तैजस-पुद्गलपरिवर्त्त अनन्तगुणे हैं और उनसे भी कार्मण-पुद्गल-परिवर्त अनन्तगुणे हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१२ - उद्देशक-५ सूत्र- ५४२
राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह; ये कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और स्पर्श वाले कहे हैं ? गौतम ! (ये) पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श वाले कहे हैं।
भगवन् ! क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चाण्डिक्य, भण्डन और विवाद-ये कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले कहे हैं? गौतम ! ये (सब) पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और चार स्पर्श वाले कहे हैं । भगवन मान, मद, सर्प, स्तम्भ, गर्व, अत्युत्क्रोश, परपरिवाद, उत्कर्ष, अपकर्ष, उन्नत, उन्नाम और दुर्नाम-ये कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाले कहे हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, नूम, कल्क, कुरूपा, जिद्मता, किल्बिष आदरण, गृहनता, वञ्चनता, प्रतिकुञ्चनता, और सातियोग-इन (सब) में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! लोभ, ईच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, आशंसनता, प्रार्थनता, लालपनता, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा और नन्दिराग, ये कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं ? गौतम ! क्रोध के समान जानना ।
भगवन् ! प्रेम-राग, द्वेष, कलह, यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य, इन (सब पापस्थानों) में कितने वर्ण आदि हैं ? क्रोध के समान इनमें भी चार स्पर्श हैं, यहाँ तक कहना। सूत्र-५४३
भगवन् ! प्राणातिपात-विरमण यावत् परिग्रह-विरमण तथा क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं । भगवन् ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाली है ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । भगवन् ! अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये चारों) वर्ण यावत् स्पर्श से रहित कहे हैं। भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम, इन सबमें कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ? गौतम ! ये सभी पूर्ववत वर्णादि यावत स्पर्श से रहित कहे हैं।
भगवन् ! सप्तम अवकाशान्तर कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला है ? गौतम ! वह वर्ण यावत् स्पर्श से रहित है। भगवन् ! सप्तम तनुवात कितने वर्णादि वाला है ? गौतम ! इसका कथन प्राणातिपात के समान करना । विशेष यह है कि यह आठ स्पर्श वाला है । सप्तम तनुवात के समान सप्तम घनवात, घनोदधि एवं सप्तम पृथ्वी के विषय में कहना । छठा अवकाशान्तर वर्णादि रहित है। छठा तनुवात, घनवात, घनोदधि और छठी पृथ्वी, ये सब आठ स्पर्श वाले हैं । सातवीं पृथ्वी की वक्तव्यता समान प्रथम पृथ्वी तक जानना । जम्बूद्वीप से लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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