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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक करता है तथा काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहर्त्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट १७६००० वर्ष इतने काल तक गमनागमन करता है।
यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में प्रथम गमक समान कहना । किन्तु विशेष यह है कि उसमें लेश्याएं तीन होती हैं । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की होती है । अध्यवसाय अप्रशस्त और अनुबन्ध स्थिति के समान होता है। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में चतुर्थ गमक के अनुसार कहना । यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो यही वक्तव्यता । विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं । यावत् भवादेश से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष । यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में तृतीय गमक के समान कहना । विशेष यह है कि उसकी स्वयं की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है।
यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट तर्महर्त्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। यहाँ सातवें गमक की वक्तव्यता यावत् भवादेश तक कहनी चाहिए। काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक ८८ हजार वर्ष । यदि वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । यहाँ सप्तम गमक की समग्र वक्तव्यता भवादेश तक कहनी चाहिए । काल की अपेक्षा से-जघन्य ४४ हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख छिहत्तर हजार वर्ष । (भगवन् !) यदि वह अप्कायिकएकेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या सूक्ष्म अप्कायिक० से आकर उत्पन्न होता है, या बादर अप्कायिक० से ? (गौतम!) पृथ्वीकायिक जीवों के समान यहाँ भी चार भेद कहना।
भगवन् ! जो अप्कायिक जीव कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है ? गौतम! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार पृथ्वीकायिक के समान अप्कायिक के भी नौ गमक जानना चाहिए । विशेष यह है कि अप्कायिक का संस्थान स्तिबुक के आकार का होता है। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है। इसी प्रकार तीनों गमकों में जानना चाहिए । तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमकों में संवेध-भव की अपेक्षा से-जघन्य दो भव और उत्कष्ट असंख्यात भव होते हैं। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्महत अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष | छठे गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहर्त्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहर्त अधिक ८८ हजार वर्ष । सातवें गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक गमनागमन करता है । आठवें गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहर्त अधिक २८ हजार वर्ष तक । नौवें गमक में भवादेश से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से-जघन्य उनतीस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; इतने काल तक गमनागमन करता है । इस प्रकार नौ ही गमकों में अप्कायिक की स्थिति जानना ।
भगवन् ! यदि वह तेजस्कायिक से आकर उत्पन्न होता हो तो ? इत्यादि प्रश्न । तेजस्कायिकों के विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि नौ ही गमकों में तीन लेश्याएं होती हैं । तेजस्काय का संस्थान सूचीकलाप के समान होता है । इसकी स्थिति (तीन अहोरात्र की) जाननी चाहिए । तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बारह अहोरात्र अधिक ८८,००० वर्ष; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। इसी प्रकार संवेध भी उपयोग रखकर कहना।
(भगवन् !) यदि वे वायुकायिकों से आकर उत्पन्न हों तो ? वायुकायिकों के विषय में तेजस्कायिकों की तरह
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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