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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक कालादेश से जघन्य पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग, इतना काल सेवन यावत् गमनागमन करता है । इस प्रकार ये तीन गमक औधिक हैं, तीन गमक जघन्यकाल की स्थिति वालों में उत्पत्ति के हैं और तीन गमक उत्कृष्टकाल की स्थिति वालों में उत्पत्ति) के हैं । ये सब मिलाकर नौ गमक होते हैं। सूत्र-८३९
भगवन् ! यदि नैरयिक संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आय वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं. अथवा असंख्यात वर्ष की आय वाले संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले उत्पन्न नहीं होते हैं । भगवन् ! यदि नैरयिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संजीतिर्यंचपंचेन्द्रियों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों, स्थलचरों अथवा खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान, यावत् पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से नही; भगवन् ! पर्याप्त-संख्येयवर्षायुष्क-संजीपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जो जीव, नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह कितनी नरकपथ्वीयों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह सातों ही नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है, यथा-रत्नप्रभा, यावत् अधःसप्तम पृथ्वी।
भगवन् ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंज्ञी के समान समझना । भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा-वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, यावत् सेवार्त्तसंहनन वाले होते हैं । शरीर की अव-गाहना, असंज्ञी के समान जानना । भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा-समचतुरस्र यावत् हुण्डक संस्थान । भगवन् ! उन जीवों के कितनी लेश्याएं कही गई हैं? गौतम ! छहों लेश्याएं । यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । (उनमें) दृष्टियाँ तीनों ही होती हैं । तीन ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। योग तीनों ही होते हैं। शेष सब यावत् अनुबन्ध तक असंज्ञी के समान समझना । विशेष यह है कि समुद्घात आदि के पाँच होते हैं तथा वेद तीनों ही होते हैं। शेष पर्ववत । यावत
भगवन् ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव, रत्नप्रभापृथ्वी में नारकरूप में उत्पन्न हो और यावत् गमनागमन करता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तक ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक । भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव रत्नप्रभा-पृथ्वी में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दोनो दस हजार वर्ष की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् प्रथम गमक पूरा, यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि काल तक । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । शेष परिमाणादि से लेकर भवादेश-पर्यन्त कथन उसी पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान, यावत् काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक ।
भगवन् ! जघन्यकाल की स्थिति वाला, पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव (एक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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