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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-1 '
शतक/ शतकशतक / उद्देशक / सूत्रांक आलाप संलाप, उनका कार्य, उनमें विवादोत्पत्ति तथा उनका निपटारा, तथा सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धि-कता आदि विषयों का निरूपण इस उद्देशक में है ।
शतक- ३ उद्देशक २
सूत्र - १७०
उस काल, उस समय में राजगृह नामका नगर था । यावत् भगवान वहाँ पधारे और परीषद् पर्युपासना करने लगी । उस काल, उस समय में चौंसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत्त और चमरचंचा नामक राजधानी में, सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठे असुरेन्द्र असुरराज चमर ने (राजगृह में विराजमान भगवान को अवधिज्ञान से देखा); यावत् नाट्यविधि दिखलाकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस लौट गया ।
'हे भगवन् ! यों कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन- नमस्कार करके पूछा- भगवन् ! क्या असुरकुमार देव इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे रहते हैं? हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार यावत् सप्तम पृथ्वी के नीचे भी वे नहीं रहते; और न सौधर्मकल्प-देवलोक के नीचे, यावत् अन्य सभी कल्पों के नीचे वे रहते हैं । भगवन् । क्या वे असुरकुमार देव ईषत्प्राग्भारा (सिद्धशिला) पृथ्वी के नीचे रहते हैं ? (हे गौतम) यह अर्थ भी समर्थ नहीं । भगवन् ! तब ऐसा वह कौन-सा स्थान है, जहाँ असुरकुमार देव निवास करते हैं ? गौतम! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बीच में (असुरकुमार देव रहते हैं ।) यहाँ असुरकुमार-सम्बन्धी समस्त वक्तव्यता कहनी चाहिए; यावत् वे दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरण करते हैं ।
भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों का अधोगमन-विषयक (सामर्थ्य) है? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! असुर- कुमार देवों का अधोगमन-विषयक सामर्थ्य कितना है ? गौतम ! सप्तमपृथ्वी तक नीचे जाने की शक्ति उनमें है । वे तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे। भगवन् किस प्रयोजन से असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं, (जाते हैं) और भविष्य में जायेंगे? हे गौतम अपने पूर्व शत्रु को दुःख देने अथवा अपने पूर्व साथी की वेदना का उपशमन करने के लिए असुरकुमार देव तृतीय पृथ्वी तक गए हैं. (जाते हैं), और जाएंगे।
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भगवन् । क्या असुरकुमारदेवों में तिर्यग् (तीरछे) गमन करने का सामर्थ्य कहा गया है? हाँ, गौतम है। भगवन् ! असुरकुमार देवों में तीरछा जाने की कितनी शक्ति है ? गौतम ! असुरकुमार देवों में, यावत् असंख्येय द्वीपसमुद्रों तक किन्तु वे नन्दीश्वर द्वीप तक गए हैं, (जाते हैं) और भविष्य में जायेंगे । भगवन् ! असुरकुमार देव, नन्दीश्वरद्वीप किस प्रयोजन से गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे ? हे गौतम! अरिहंत भगवान के जन्म महोत्सव में, निष्क्रमण महोत्सव में, ज्ञानोत्पत्ति होने पर तथा परिनिर्वाण पर महिमा करने के लिए नन्दीश्वरद्वीप गए हैं, जाते हैं और जाएंगे । भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों में ऊर्ध्व गमनविषयक सामर्थ्य है ? हाँ, गौतम ! है ।
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भगवन् । असुरकुमार देवों की ऊर्ध्वगमनविषयक शक्ति कितनी है ? गौतम असुरकुमार देव अपने स्थान से यावत् अच्युतकल्प तक ऊपर जाने में समर्थ हैं । अपितु वे सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे । भगवन् ! असुरकुमारदेव किस प्रयोजन से सौधर्मकल्प तक गए हैं. (जाते हैं और जाएंगे ? हे गौतम उन (असुर-कुमार) देवों का वैमानिक देवों के साथ भवप्रत्ययिक वैरानुबन्ध होता है। इस कारण वे देव क्रोधवश वैक्रिय शक्ति द्वारा नानारूप बनाते हुए तथा परकीय देवियों के साथ (परिचार) संभोग करते हुए (वैमानिक) आत्मरक्षक देवों को त्रास पहुँचाते हैं, तथा यथोचित छोटे-मोटे रत्नों को ले (चूरा) कर स्वयं एकान्त भाग में चले जाते हैं ।
भगवन् ! क्या उन देवों के पास यथोचित छोटे-मोटे रत्न होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! जब वे असुरकुमार देव रत्न चुराकर भाग जाते हैं, तब वैमानिक देव उनका क्या करते हैं? वैमानिक देव उनके शरीर को अत्यन्त व्यथा पहुँचाते हैं ।
भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्मकल्प में) गए हुए वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ हैं ? (हे गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं । वे वहाँ से वापस लौट जाते हैं । वहाँ से लौटकर वे यहाँ (अपने स्थान में) आते हैं । यदि वे ( वैमानिक) अप्सराएं उनका आदर करें, उन्हें स्वामीरूप में स्वीकारे तो, वे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती )" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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