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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-१० सूत्र-४७४
दशवें शतक के चौंतीस उद्देशक इस प्रकार हैं - दिशा, संवृतअनगार, आत्मऋद्धि, श्यामहस्ती, देवी, सभा और उत्तरवर्ती अट्ठाईस अन्तद्वीप
शतक-१०, उद्देशक-१ सूत्र-४७५
राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा - भगवन् ! यह पूर्वदिशा क्या कहलाती है ? गौतम! यह जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है । भगवन् ! पश्चिमदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह भी पूर्वदिशा के समान जानना । इसी प्रकार दक्षिणदिशा, उत्तरदिशा, उर्ध्वदिशा और अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए।
भगवन् ! दिशाएँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! दिशाएँ दस कही गई है । वे इस प्रकार हैं - पूर्व, पूर्व-दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा । भगवन् ! इन दस दिशाओं के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! (इनके) दस नाम हैं, - ऐन्द्री (पूर्व), आग्नेयी, याम्या (दक्षिण), नैऋती, वारुणी (पश्चिम), वायव्या, सौम्या (उत्तर), ऐशानी, विमला (ऊर्ध्वदिशा) और तमा (अधोदिशा)।
भगवन ! ऐन्द्री पूर्व दिशा जीवरूप है, जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप है, अथवा अजीवरूप है, अजीव के देशरूप है या अजीव के प्रदेशरूप है ? गौतम ! वह जीवरूप भी है, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह अजीवप्रदेशरूप भी है । उसमें जो जीव हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के देश हैं । जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः ऐकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं। उसमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं, यता-रूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीवों के चार भेद हैं यथा-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल । जो अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के हैं, यथा-धर्मास्तिकाय नहीं किन्तु धर्मास्तिकाय का देश हैं, अधर्मास्थिकाय के प्रदेश और अद्धामय अर्थात काल है।
भगवन् ! अग्नेयीदिशा क्या जीवरूप है, जीवदेशरूप है, अथवा जीवप्रदेशरूप है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वह जीवरूप नहीं, किन्तु जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप भी है तथा अजीवरूप है और अजीव के प्रदेशरूप भी है। इसमें जीव के जो देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और द्वीन्द्रिय का एक देश हैं १, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश एवं द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं २; अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं ३. एकेन्द्रियों के बहुत देश और एक त्रीन्द्रिय का एक देश है १. इसी प्रकार से पूर्ववत् त्रीन्द्रिय के साथ तीन भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार यावत् अनिन्द्रिय तक के भी क्रमशः तीन-तीन भंग कहने चाहिए । इसमें जीव के जो प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के बहुत प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत प्रदेश हैं । इसी प्रकार सर्वत्र प्रथम भंग को छोड़ कर दो-दो भंग जानने चाहिए, यावत् अनिन्द्रिय तक इसी प्रकार कहना चाहिए । अजीवों के दो भेद हैं, यथा-रूपी अजीव और अरूपी अजीव । जो रूपी अजीव हैं, वे चार प्रकार के हैं, यथा-स्कन्ध से लेकर यावत् परमाणु पुद्गल तक । अरूपी अजीव सात प्रकार के हैं, यथा-धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय ।
भगवन् ! याया (दक्षिण)-दिशा क्या जीवरूप है ? इत्यादि प्रश्न । (गौतम !) ऐन्द्रीदिशा के समान जानना । नैर्ऋती विदिशा को आग्नेयी विदिशा के समान जानना । वारुणी (पश्चिम)-दिशा को ऐन्द्रीदिशा के समान जानना । वायव्या विदिशा आग्नेयी के समान है । सौम्या (उत्तर)-दिशा ऐन्द्रीदिशा के समान जान लेना । ऐशानी आग्नेयी के समान जानना । विमला (ऊर्ध्व)-दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान है तथा अजीवों का कथन ऐन्द्रीदिशा के
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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