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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक यौवन-गुणों से युक्त, एक सरीखे आभूषण, वस्त्र और परिकर धारण किये हुए एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्बिक तरुणों को बुलाओ। तब वे कौटुम्बिक पुरुष स्वामी के आदेश को यवत् स्वीकार करके शीघ्र ही एक सरीखे, समान त्वचा वाले यावत् एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्बिक तरुणों को बुला लाए।
जमालि क्षत्रियकुमार के पिता के (आदेश से) कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये हुए वे एक हजार तरुण सेवक हर्षित और सन्तुष्ट हो कर, स्नानादि से निवृत्त हो कर बलिकर्म, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करके एक सरीखे आभूषण और वस्त्र तथा वेष धारण करके जहाँ जमालि क्षत्रियकुमार के पिता थे, वहाँ आए और हाथ जोड़ कर यावत् उन्हें जय-विजय शब्दों से बधा कर इस प्रकार बोले-हे देवानुप्रिय ! हमें जो कार्य करना है, उसका आदेश दीजिए । इस पर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने उन एक हजार तरुण सेवकों को इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! तुम स्नानादि करके यावत् एक सरीखे वेष में सुसज्ज होकर जमालिकुमार को शिबिका को उठाओ । तब वे कौटम्बिक तरुण क्षत्रियकमार जमालि के पिता का आदेश शिरोधार्य करके स्नानादि करके यावत एक सरीखी पोशाक धारण किये हए क्षत्रियकुमार जमालि की शिबिका उठाई।
हजार पुरुषो द्वारा उठाई जाने योग्य उस शिबिका पर जब जमालि क्षत्रियकुमार आदि सब आरूढ हो गए, तब उस शिबिका के आगे-आगे सर्वप्रथम ये आठ मंगल अनुक्रम से चले, यथा-स्वस्तिक, श्रवत्स, नन्द्यावर्त्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण | इन आठ मंगलों के अनन्तर पूर्ण कलश चला; इत्यादि, औपपातिकसूत्र के कहे अनुसार यावत् गगनतलचुम्बिनी वैजयन्ती (ध्वजा) भी आगे यथानुक्रम से खाना हई । यावत् आलोक करते हुए और जय-जयकार शब्द का उच्चारण करते हुए अनुक्रम से आगे चले । इसके पश्चात् बहुत से उग्रकुल के, भोगकुल के क्षत्रिय, इत्यादि यावत् महापुरुषों के वर्ग से परिवृत होकर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने स्नान आदि किया । यावत् वे विभूषित होकर उत्तम हाथी के कंधे पर चढे और कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से बिंजाते हुए, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर तथा महासुभटों के समुदाय से धिरे हुए यावत् क्षत्रियकुमार के पीछे-पीछे चल रहे थे । साथ ही जमालि क्षत्रिय कुमार के आगे बड़े-बड़े, श्रेष्ठ घुड़सवार तथा उसके दोनों बगलमें उत्तम हाथी एवं पीछे रथ और रथसमूह चल रहे थे।
इस प्रकार क्षत्रियकुमार जमालि सर्व ऋद्धि सहित सहित यावत् बाजे-गाजे के साथ चलने पर श्वेत छत्र धारण किया हुआ था । उसके दोनों और श्वेत चामर और छोटे पंखे बिंजाए जा रहे थे । क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर जाता हुआ, ब्राह्मणकुण्डग्राम के बाहर जहाँ बशुशालक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उस ओर गमन करने लगा। जब क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्ग्राम नगर के मध्य में से होकर जा रहा था, तब श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् राजमार्गों पर बहुत-से-अर्थार्थी (धनार्थी), कामार्थी इत्यादि लोग, औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार इष्ट, कान्त, प्रिय आदि शब्दों से यावत् अभिनन्दन एवं स्तुति करते हुए इस प्रकार कहने लगे- हे नन्द (आनन्ददाता) ! धर्म द्वारा तुम्हारी जय हो! हे नन्द ! तप के द्वारा तुम्हारी जय हो ! हे नन्द ! तुम्हारा भद्र हो ! दे देव ! अखण्ड-उत्तम-ज्ञान-दर्शन-चारित्र द्वारा अविजित इन्द्रियों को जीतो और विजित श्रमणधर्म का पालन करो । हे देव ! विघ्नों को जीतकर सिद्धि में जाकर बसो ! तप से धैर्य रूपी कच्छ को अत्यन्त दृढतापूर्वक बाँधकर राग-द्वेष रूपी मल्लों को पछाड़ो ! उत्तम शुक्लध्यान के द्वारा अष्टकर्मशत्रुओं का मर्दन करो ! हे धीर! अप्रमत्त होकर त्रैलोक्य के रंगमंच में आराधनारूपी पताका ग्रहण करो और अन्धकार रहित अनत्तर केवलज्ञान को प्राप्त करो! तथा जिनवरोपदिष्ट सरल सिद्धिमार्ग पर चलकर परमपदरूप मोक्ष को प्राप्त करो ! परीषह-सेना को नष्ट करो तथा इन्द्रियग्राम के कण्टकरूप उपसर्गों पर विजय प्राप्त करो! तुम्हारा धर्माचरण निर्विघ्न हो! इस प्रकार से लोग अभिनन्दन एवं स्तुति करने लगे।
तब औपपातिकसूत्र में वर्णित कूणिक के वर्णनानुसार क्षत्रियकुमार जमालि हजारों की नयनावलियों द्वारा देखा जाता हुआ यावत् निकला। फिर ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशालक नामक उद्यान के निकट आया और ज्यों ही उसने तीर्थकर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देखा, त्यों ही हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली उस
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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