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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक सचित्त है अथवा अचित्त है ? गौतम ! काम सचित्त भी हैं और काम अचित्त भी हैं । भगवन् ! काम जीव हैं अथवा अजीव हैं ? गौतम ! काम जीव भी हैं और काम अजीव भी हैं। भगवन् ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? गौतम ! काम जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते । भगवन् ! काम कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! काम दो प्रकार के कहे गए हैं । शब्द और रूप।
भगवन् ! भोग रूपी हैं अथवा अरूपी हैं ? गौतम ! भोग रूपी होते हैं, वे (भोग) अरूपी नहीं होते । भगवन्! भोग सचित्त होते हैं या अचित्त होते हैं ? गौतम ! भोग सचित्त भी होते हैं और अचित्त भी होते हैं । भगवन् ! भोग जीव होते हैं या अजीव होते हैं ? गौतम ! भोग जीव भी होते हैं, और भोग अजीव भी होते हैं । भगवन् ! भोग जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं? गौतम! भोग जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं । भगवन् ! भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं? गौतम ! भोग तीन प्रकार के कहे गए हैं । वे गन्ध, रस और स्पर्श । भगवन ! काम-भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! कामभोग पाँच प्रकार के कहे गए हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श।।
भगवन् ! जीव कामी हैं अथवा भोगी हैं ? गौतम ! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं ? गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा जीव कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं । इस कारण, हे गौतम ! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव कामी हैं अथवा भोगी हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव भी पूर्ववत् कामी भी हैं, भोगी भी हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के सम्बन्ध में भी यही प्रश्न है । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव कामी नहीं हैं, किन्तु भोगी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि पृथ्वीकायिक जीव कामी नहीं, किन्तु भोगी हैं ? गौतम स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक जीव भोगी हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक कहना चाहिए।
इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । त्रीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्ष भोगी हैं । भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में भी प्रश्न है । गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी है और भोगी भी है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! (चतुरिन्द्रिय जीव) चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। शेष वैमानिकों पर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए।
भगवन ! काम-भोगी, नोकामी-नोभोगी और भोगी, इन जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत विशेषाधिक हैं? गौतम ! कामभोगी जीव सबसे थोड़े हैं, नोकामी-नोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं, भोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं। सूत्र-३६३
भगवन् ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य, जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, भगवन् ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम के द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकारपराक्रम द्वारा किन्हीं विपुल एवं भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ हैं । इसलिए वह भोगी भोगों का परित्याग करता हुआ ही महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है । भगवन् ! ऐसा अधोऽवधिक (नियत क्षेत्र का अवधिज्ञानी) मनुष्य, जो किसी देवलोक में उत्पन्न होने योग्य है, क्या वह क्षीणभोगी उत्थान यावत् पुरुषकार पराक्रम द्वारा विपुल एवं भोग्य लोगों को भोगने में समर्थ है । इसके विषय में छद्मस्थ के समान ही कथन जान लेना
भगवन् ! ऐसा परमावधिक मनुष्य जो उसी भवग्रहण से सिद्ध होने वाला यावत् सर्व-दुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह क्षीणभोगी यावत् भोगने योग्य विपुल भोगों को भोगने में समर्थ है ? (हे गौतम !) छद्मस्थ के समान समझना । भगवन् ! केवलज्ञानी मनुष्य भी, जो उसी भव में सिद्ध होने वाला है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करने
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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