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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक ही सारा कथन करना चाहिए। सूत्र-३५८
भगवन् ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं । भगवन् ! जीव सातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से; तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से, चिन्ता उत्पन्न न कराने से, विलाप एवं रुदन कराकर आंसू न बहवाने से, उनको न पीटने से, उन्हें परिताप न देने से जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं । इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहना चाहिए । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! जीव असातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं । भगवन् ! जीव असातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! दूसरों को दुःख देने से, दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, जीवों को विषाद या चिन्ता उत्पन्न करने से, दूसरों को रुलाने या विलाप कराने से, दूसरों को पीटने से और जीवों को परिताप देने से तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्वों को दुःख पहुँचाने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् उनको परिताप देने से हे गौतम ! इस प्रकार से जीव असातावेदनीय कर्म बाँधते हैं । इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में समझना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कथन करना चाहिए। सूत्र-३५९
भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःषमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव-प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखात) तथा कोलाहलभूत होगा । काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, भयंकर वात एवं संवर्तक बात चलेंगी । इस काल में यहाँ बारबार चारों ओर से धूल उड़ने से दिशाएं रज से मलिन और रेत से कलुषित, अन्धकारपटल से युक्त एवं आलोक से रहित होंगी। समय की रूक्षता के कारण चन्द्रमा अत्यन्त शीतलता फैकेंगे; सूर्य अत्यन्त तपेंगे। इसके अनन्तर बारम्बार बहुत से खराब रस वाले मेघ, विपरीत रस वाले मेघ, खारे जल वाले मेघ, खत्तमेघ, अग्निमेघ, विद्युत्मेघ, विषमेघ, अशनिमेघ, न पीने योग्य जल से पूर्ण मेघ, व्याधि, रोग और वेदना को उत्पन्न करने वाले जल से युक्त तथा अमनोज्ञ जल वाले मेघ, प्रचण्ड वायु के आघात से आहत
धाराओं के साथ गिरते हए प्रचर वर्षा बरसाएंगे: जिससे भारत वर्ष के ग्राम, आकर, नगर, खेडे, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण और आश्रम में रहने वाले जनसमूह, चतुष्पद, खग, ग्रामों और जंगलों में संचार में रत त्रसप्राणी तथा अनेक प्रकार के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लताएं, बेलें, घास, दूब, पर्वक, हरियाली, शालि आदि धान्य, प्रवाल
और अंकुर आदि तृणवनस्पतियाँ, ये सब विनष्ट हो जाएंगी । वैताढ्यपर्वत को छोड़कर शेष सभी पर्वत, छोटे पहाड़, टीले, डुंगर, स्थल, रेगिस्तान, बंजरभूमि आदि सबका विनाश हो जाएगा । गंगा और सिन्धु, इन दो नदियों को छोड़कर शेष नदियाँ, पानी के झरने, गड्ढे, (नष्ट हो जाएंगे) दुर्गम और विषम भूमि में रहे हुए सब स्थल समतल क्षेत्र हो जाएंगे। सूत्र - ३६०
भगवन् ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव किस प्रकार का होगा ? गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगारभूत, मुद्रभूत, भस्मीभूत, तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत शैवाल वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थित जीवों का चलना बड़ा ही दुष्कर हो जाएगा । भगवन् ! उस समय में भारतवर्ष के मनुष्यों का आकार और भावों का आविर्भाव कैसा होगा?
गौतम ! उस समय में भारतवर्ष के मनुष्य अति कुरूप, कुवर्ण, कुगन्ध, कुरस और कुस्पर्श से युक्त, अनिष्ट, अकान्त यावत् अमनोगम, हीनस्वर वाले, दीनस्वर वाले, अनिष्टस्वर वाले यावत् अमनाम स्वर वाले, अनादेय और अप्रतीतियुक्त वचन वाले, निर्लज्ज, कूट-कपट, कलह, वध, बन्ध और वैरविरोध में रत, मर्यादा का उल्लंघन करने में
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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