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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र - २९३
"पूर्व और पश्चिम की कृष्णराजि षट्कोण हैं, तथा दक्षिण और उत्तर की बाह्य कृष्णराजि त्रिकोण हैं । शेष सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं।" सूत्र - २९४
भगवन् ! कृष्णराजियों का आयाम, विष्कम्भ और परिक्षेप कितना है ? गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है।
भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बदीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके आ जाए इतनी शीघ्र दिव्यगति से कोई देव लगातार एक दिन. दो दिन. यावत् अर्द्धमास तक चले, तब कहीं वह देव किसी कृष्णराजि को पार कर पाता है और किसी कृष्णराजि को पार नहीं कर पाता । हे गौतम ! कृष्णराजियाँ इतनी बड़ी हैं।
भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में गृह हैं अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में ग्राम आदि हैं? यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में उदार महामेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्च्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं? हाँ, गौतम ! ऐसा होता है। भगवन् ! क्या इन सबको देव करता है, असुर करता है अथवा नाग करता है ? गौतम! (वहाँ यह सब) देव ही करता है, किन्तु न असुर करता है और न नाग(कुमार) करता है।
भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर स्तनितशब्द है ? गौतम ! उदार मेघों के समान इनका भी कथन करना। भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए हैं । भगवन् ! क्या कृष्ण-राजियों में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में चन्द्र की कान्ति या सूर्य की कान्ति है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवन् ! कृष्णराजियों का वर्ण कैसा है ? गौतम ! कृष्णराजियों का वर्ण काला है, यह काली कान्ति वाला है, यावत् परमकृष्ण है । तमस्काय की तरह अतीव भयंकर होने से इसे देखते ही देव क्षुब्ध हो जाता है; यावत् अगर कोई देव शीघ्रगति से झटपट इसे पार कर जाता है । भगवन् ! कृष्णराजियों के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! कृष्णराजियों के आठ नाम कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-कृष्णराजि, मेघराजि, मघा, माघवती, वातपरिघा, वातपरिक्षोभा, देवपरिघा और देवपरिक्षोभा।
भगवन् ! क्या कृष्णराजियाँ पृथ्वी के परिणामरूप हैं, जल के परिणामरूप हैं, या जीव के परिणामरूप हैं, अथवा पुद्गलों के परिणामरूप हैं ? गौतम ! कृष्णराजियाँ पृथ्वी के परिणामरूप हैं, किन्तु जल के परिणामरूप नहीं हैं, वे जीव के परिणामरूप भी हैं और पुद्गलों के परिणामरूप भी हैं।
भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पहले उत्पन्न हो चूके हैं ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं, किन्तु बादर अप्कायरूप से, बादर अग्निकायरूप से और बादर वनस्पतिकायरूप से उत्पन्न नहीं हुए। सूत्र-२९५
इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं । यथा-अर्चि, अर्चमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ और सुप्रतिष्ठाभ । इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है।
भगवन् ! अर्चि विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में हैं । भगवन् ! अर्चिमाली विमान कहाँ हैं? गौतम ! अर्चिमाली विमान पूर्व में हैं। इसी क्रम से सभी विमानों के विषय में जानना चाहिए यावत्-हे भगवन् ! रिष्ट विमान कहाँ बताया गया है ? गौतम ! रिष्ट विमान बहुमध्यभाग में बताया गया है।
इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ जाति के लोकान्तिक देव रहते हैं, यथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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