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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक बोले-भगवन् ! चातुर्याम धर्म के बदले हम आपके समीप प्रतिक्रमण सहित पंचमहाव्रतरूप धर्म को स्वीकार करके विचरण करना चाहते हैं। भगवन्-देवानुप्रियो ! जिस प्रकार आपको सुख हो, वैसा करो, किन्तु प्रतिबन्ध मत करो। इसके पश्चात् वे पापित्य स्थविर भगवन्त...यावत् अन्तिम उच्छ्वास-निःश्वास के साथ सिद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से प्रहीण हए और कईं (स्थविर) देवलोकों में देवरूप से उत्पन्न हए। सूत्र - २६८
भगवन ! देवगण कितने प्रकार के हैं ? गौतम । चार प्रकार के भवनवासी वाणव्यन्तर ज्योतिष्क वैमानिक भवनवासी दस प्रकार के हैं। वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष्क पाँच प्रकार के हैं और वैमानिक दो प्रकार के हैं सूत्र - २६९
राजगृह नगर क्या है ? दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार क्यों होता है ? समय आदि काल का ज्ञान किन जीवों को होता है, किनको नहीं? रात्रि-दिवस के विषय में पार्श्वजिनशिष्यों के प्रश्न और देवलोकविषयक प्रश्न; इतने विषय इस उद्देशक में हैं। सूत्र - २७०
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। इसी प्रकार है। शतक-५ - उद्देशक-१० सूत्र-२७१
उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। पंचम शतक के प्रथम उद्देशक समान यह उद्देशक भी कहना । विशेष यह कि यहाँ चन्द्रमा कहना।
शतक-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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