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________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक कुलों और राजवंशों के तिलक थे । अजित थे (किसी से भी नहीं जीते जाते थे) और अजितरथ (अजेय रथ वाले) थे । बलदेव हल और मूशल रूप शस्त्रों के धारक थे, तथा वासुदेव शाङ्ग धनुष, पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमोदकी गदा, शकत्सिनन्दकनमा खङ्ग के धारक थे । प्रवर, उज्ज्वल, सुकान्त, विमल कौस्तुभ मणि युक्त मुकुट के धारी थे। उनका मुख कुण्डलों में लगे मणियों के प्रकाश से युक्त रहता था । कमल के समान नेत्र वाले थे। एकावली हार कंठ से लेकर वक्षःस्थल तक शोभित रहता था । उनका वक्षःस्थल श्रीवत्स के सुलक्षण से चिह्नित था । वे विश्व-विख्यात यश वाले थे । सभी ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले, सुगन्धित पुष्पों से रची गई, लम्बी, शोभायुक्त, कान्त, विकसित, पंचवर्णी श्रेष्ठ माला से उनका वक्षःस्थल सदा शोभायमान रहता था । उनके सुन्दर अंग-प्रत्यंग एक सौ आठ प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न थे। वे मद-मत्त गजराज के समान ललित, विक्रम और विलासयुक्त गति वाले थे । शरद ऋतु के नव-उदित मेघ के समान मधुर, गंभीर, क्रौंच पक्षी के निर्घोष और दुन्दुभि के समान स्वर वाले थे । बलदेव कटिसूत्र वाले नील कौशेयक वस्त्र से तथा वासुदेव कटिसूत्र वाले पीत कौशेयक वस्त्र से युक्त रहते थे (बलदेवों की कमर पर नीले रंग का और वासुदेवों की कमर पर पीले रंग का दुपट्टा बंधा रहता था)। वे प्रकृष्ट दीप्ति और तेज से युक्त थे, प्रबल बलशाली होने से वे मनुष्यों में सिंह के समान होने से नरसिंह, मनुष्यों के पति होने से नरपति, परम ऐश्वर्यशाली होने से नरेन्द्र तथा सर्वश्रेष्ठ होने से नर-वृषभ कहलाते थे । अपने कार्यभार का पूर्ण रूप से निर्वाह करने से वे मरुद्-वृषभकल्प अर्थात् देवराज की उपमा को धारण करते थे । अन्य राजा-महाराजाओं से अधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान थे । इस प्रकार नील-वसन वाले नौ राम (बलदेव) और नव पीत-वसन वाले केशव (वासुदेव) दोनों भाई-भाई हुए हैं। सूत्र - ३२८ उनमें वासुदेवों के नाम इस प्रकार हैं-१. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुंडरीक, ७. दत्त, ८. नारायण (लक्ष्मण) और ९. कृष्ण । बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं-१. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म और ९. अन्तिम बलदेव राम । सूत्र-३२९, ३३० इन नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्व भव के नौ नाम इस प्रकार थे- १. विश्वभूति, २. पर्वत, ३. धनदत्त, ४. समुद्रदत्त, ५. ऋषिपाल, ६. प्रियमित्र, ७. ललितमित्र, ८. पुनर्वसु, ९. और गंगदत्त । ये वासुदेवों के पूर्व भव में नाम थे। सूत्र-३३१, ३३२ इससे आगे यथाक्रम से बलदेवों के नाम कहूँगा । १. विश्वनन्दी, २. सुबन्धु, ३. सागरदत्त, ४. अशोक, ५. ललित, ६. वाराह, ७. धर्मसेन, ८. अपराजित और ९. राजललित। सूत्र-३३३, ३३४ इस नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्वभव में नौ धर्माचार्य थे- १. संभूत, २. सुभद्र, ३. सुदर्शन, ४. श्रेयांस, ५. कृष्ण, ६. गंगदत्त, ७. सागर, ८. समुद्र और ९. द्रुमसेन । सूत्र - ३३५ ये नवों ही धर्माचार्य कीर्तिपुरुष वासुदेवों के पूर्व भव में धर्माचार्य थे । जहाँ वासुदेवों ने पूर्व भव में निदान किया था उन नगरों के नाम आगे कहते हैंसूत्र - ३३६, ३३७ इन नवों वासुदेवों की पूर्व भव में नौ निदान-भूमियाँ थीं । (जहाँ पर उन्होंने निदान (नियाणा) किया था)। जैसे- १. मथुरा, २. कनकवस्तु, ३. श्रावस्ती, ४. पोदनपुर, ५. राजगृह, ६. काकन्दी, ७. कौशाम्बी, ८. मिथिला-पुरी और ९. हस्तिनापुर। सूत्र-३३८,३३९ इन नवों वासुदेवों के निदान करने के नौ कारण थे- १. गावी (गाय), २. यूतस्तम्भ, ३. संग्राम, ४. स्त्री, ५. मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 92
SR No.034670
Book TitleAgam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size3 MB
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