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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-९७ सूत्र-१७६
मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से गोस्तुभ आवास-पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सतानवे हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना चाहिए।
आठों कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ सतानवे कही गई हैं।
चातुरन्त चक्रवर्ती हरिषेण राजा कुछ कम ९७०० वर्ष अगार-वास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
समवाय-९७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९८ सूत्र - १७७
नन्दनवन के ऊपरी चरमान्त भाग से पांडुक वन के नीचले चरमान्त भाग का अन्तर अट्टानवे हजार योजन का है।
मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से गोस्तुभ आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग अट्ठानवे हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है । इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में अवस्थित आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए।
दक्षिण भरतक्षेत्र का धनःपृष्ठ कुछ कम ९८०० योजन आयाम (लम्बाई) की अपेक्षा कहा गया है।
उत्तर दिशा से सूर्य प्रथम छह मास दक्षिण की ओर आता हुआ उनचासवे मंडल के उपर आकर मुहूर्त्त के इकसठिये अट्ठानवे भाग दिवस क्षेत्र (दिन) के घटाकर और रजनी-क्षेत्र (रात) के बढ़ाकर संचार करता है । इसी प्रकार दक्षिण दिशा से सूर्य दूसरे छह मास उत्तर की ओर जाता हुआ उनचासवे मंडल के ऊपर आकर मुहूर्त्त के अट्ठानवे इकसठ भाग रजनीक्षेत्र (रात) के घटाकर और दिवस क्षेत्र (दिन) के बढ़ाकर संचार करता है। रेवती से लेकर ज्येष्ठा तक के उन्नीस नक्षत्रों के तारे अट्ठानवे हैं।
समवाय-९८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९९ सूत्र - १७८
मन्दर पर्वत निन्यानवे हजार योजन ऊंचा कहा गया है । नन्दनवन के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त ९९०० योजन अन्तर वाला कहा गया है । इसी प्रकार नन्दनवन के दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त ९९०० योजन अन्तर वाला है।
उत्तर दिशा में सूर्य का प्रथम मंडल आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवे हजार योजन कहा गया है । दूसरा सूर्य-मंडल भी आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवे हजार योजन कहा गया है । तीसरा सूर्यमंडल भी आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवे हजार योजन कहा गया है।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अंजन कांड के अधस्तन चरमान्त भाग से वाणव्यन्तर भौमेयक देवों के विहारों (आवासों) का उपरिम अन्तभाग ९९०० योजन अन्तर वाला कहा गया है।
समवाय-९९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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