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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-८६ सूत्र - १६५
सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् के छयासी गण और छयासी गणधर थे। सुपार्श्व अर्हत् के ८६०० वादी मुनि थे।
दूसरी पृथ्वी के मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अधस्तन चरमान्त भाग छयासी हजार योजन के अन्तर वाला कहा गया है।
समवाय-८६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-८७ सूत्र-१६६
मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तुप आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है । मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त भाग से दकभास आवास पर्वत का उत्तरी चरमान्त सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है । इसी प्रकार मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है। और इसी प्रकार मन्दर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से दकसीम आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है।
आद्य ज्ञानावरण और अन्तिम (अन्तराय) कर्म को छोड़कर शेष छहों कर्मप्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ सतासी कही गई हैं।
महाहिमवन्त कूट के उपरिम अन्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग ८७०० योजन अन्तर वाला है। इसी प्रकार रुक्मी कूट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के अधोभाग का अन्तर भी सतासी सौ योजन है।
समवाय-८७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-८८ सूत्र-१६७
प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में अठासी-अठासी महाग्रह कहे गए हैं।
दृष्टिवाद नामक बारहवे अंग के सूत्रनामक दूसरे भेद में अठासी सूत्र कहे गए हैं । जैसे ऋजुसूत्र, परिणतापरिणत सूत्र, इस प्रकार नन्दीसूत्र के अनुसार अठासी सूत्र कहना चाहिए।
मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तूप आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग ८८०० योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए।
बाहरी उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा को जाता हुआ सूर्य प्रथम छह मास में चवालीसवे मण्डल में पहुँचने पर मुहूर्त के इकसठिये अठासी भाग दिवस क्षेत्र (दिन) को घटाकर और रजनीक्षेत्र (रात) को बढ़ाकर संचार करता है। दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा को जाता हुआ सूर्य दूसरे छह मास पूरे करके चवालीसवे मण्डल में पहुँचने पर मुहूर्त के इकसठिये अठासी भाग रजनी क्षेत्र (रात) के घटाकर और दिवस क्षेत्र (दिन) के बढ़ाकर संचार करता है ।
समवाय-८८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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