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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-६६ सूत्र-१४४
दक्षिणार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे । इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे । उत्तरार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे । इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे।
श्रेयांस अर्हत् के छयासठ गण और छयासठ गणधर थे। आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागरोपम कही गई है।
समवाय-६६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-६७ सूत्र-१४५
पंचसांवत्सरिक युग में नक्षत्र मास से गिरने पर सड़सठ नक्षत्रमास हैं।
हैमवत और ऐरवत क्षेत्र की भुजाएं सड़सठ-सड़सठ सौ पचपन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से तीन भाग प्रमाण कही गई है।
मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गौतम द्वीप के पूर्वी चरमान्त भाग का सड़सठ हजार योजन बिना किसी व्यवधान के अन्तर कहा गया है।
सभी नक्षत्रों का सीमा-विष्कम्भ (दिन-रात में चन्द्र द्वारा भोगने योग्य क्षेत्र) सड़सठ भागों से विभाजित करने पर सम अंश वाला कहा गया है।
समवाय-६७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-६८ सूत्र-१४६
धातकीखण्ड द्वीप में अड़सठ चक्रवर्तीयों के अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियाँ कही गई हैं । उत्कृष्ट पद की अपेक्षा धातकीखण्ड में अड़सठ अरहंत उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए।
पुष्करवर द्वीपार्ध में अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियाँ कही गई हैं । वहाँ उत्कृष्ट रूप से अड़सठ अरहन्त उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए। विमलनाथ अर्हन् के संघ में श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा अड़सठ हजार थी।
समवाय-६८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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