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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-५५ सूत्र-१३३
मल्ली अर्हन् पचपन हजार वर्ष की परमायु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से पूर्वी विजयद्वार के पश्चिमी चरमान्त भाग का अन्तर पचपन हजार योजन का कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित द्वारों का अन्तर जानना चाहिए।
श्रमण भगवान महावीर अन्तिम रात्रि में पुण्य-काल विपाक वाले पचपन और पाप-फल विपाक वाले पचपन अध्ययनों का प्रतिपादन करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
पहली और दूसरी इन दो पृथ्वीयों में पचपन लाख नारकावास कहे गए हैं। दर्शनावरणीय नाम और आयु इन तीन कर्मप्रकृतियों की मिलाकर पचपन उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं।
समवाय-५५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-५६ सूत्र-१३४
जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमाओं के परिवार वाले छप्पन नक्षत्र चन्द्र के साथ योग करते थे, करते हैं और करेंगे। विमल अर्हत् के छप्पन गण और छप्पन गणधर थे ।
समवाय-५६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-५७
सूत्र-१३५
आचारचूलिका को छोड़कर तीन गणिपिटकों के सत्तावन अध्ययन हैं । जैसे आचाराङ्ग के अन्तिम निशीथ अध्ययन को छोड़कर प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ, द्वीतिय श्रुतस्कन्ध के आचारचूलिका को छोड़कर पन्द्रह, दूसरे सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह, द्वीतिय श्रुतस्कन्ध के सात और स्थानाङ्ग के दश, इस प्रकार सर्व सतावन अध्ययन हैं।
गोस्तुभ आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त से वड़वामुख महापाताल के बहुमध्य देशभाग का बिना किसी बाधा के सत्तावन हजार योजन अन्तर कहा गया है । इसी प्रकार दकभास और केतुक का, संख और यूपक का और दकसीम तथा ईश्वर नामक महापाताल का अन्तर जानना चाहिए।
मल्लि अर्हत् के संघ में सतावन सौ मनःपर्यवज्ञानी मुनि थे।
महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत की जीवाओं का घन:पृष्ठ सतावन हजार दो सौ तेरानवे योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग प्रमाण परिक्षेप (परिधि) रूप से कहा गया है।
__ समवाय-५७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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