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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-३८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-३९ सूत्र - ११५
नमि अर्हत के उनतालीस सौ नियत क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञान मुनि थे।
समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में उनतालीस कुलपर्वत कहे गए हैं । जैसे-तीस वर्षधर पर्वत, पाँच मन्दर (मेरु) और चार इषुकार पर्वत ।
दूसरी, चौथी, पाँचवी, छठी और सातवी इन पाँच पृथ्वीयों में उनतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयुकर्म, इन चारों कर्मों की उनतालीस उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं।
समवाय-३९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४० सूत्र-११६
अरिष्टनेमि अर्हन् के संघ में चालीस हजार आर्यिकाएं थीं। मन्दर चूलिकाएं चालीस योजन ऊंची कही गई हैं। शान्ति अर्हन् चालीस धनुष ऊंचे थे । नागकुमार, नागराज भूतानन्द के चालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। क्षद्रिका विमान-प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गए हैं।
फाल्गुन पूर्णमासी के दिन सूर्य चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है । कार्तिकी पूर्णिमा को भी चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है। महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमानावास कहे गए हैं।
समवाय-४० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४१ सूत्र-११७
नमि अर्हत् के संघ में इकतालीस हजार आर्यिकाएं थीं।
चार पृथ्वीयों में इकतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं । जैसे-रत्नप्रभा में ३० लाख, पंकप्रभा में १० लाख, तमःप्रभा में ५ कम एक लाख और महातमःप्रभा में ५ । महालिका विमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग में इकतालीस उद्देशनकाल कहे गए हैं।
समवाय-४१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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