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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-२९ सूत्र - ६३
पापश्रुतप्रसंग-पापों के उपार्जन करने वाले शास्त्रों का श्रवण-सेवन उनतीस प्रकार का है। जैसे-भौमश्रुत, उत्पातश्रुत, स्वप्नश्रुत, अन्तरिक्षश्रुत, अंगश्रुत, स्वरश्रुत, व्यंजनश्रुत, लक्षणश्रुत । भौमश्रुत तीन प्रकार का है, जैसेसूत्र, वृत्ति और वार्तिक । इन तीन भेदों से उपर्युक्त भौम, उत्पात आदि आठों प्रकार के श्रुत के चौबीस भेद होते हैं। विकथानुयोगश्रुत, विद्यानुयोगश्रुत, मंत्रानुयोगश्रुत, योगानुयोगश्रुत और अन्यतीर्थिकप्रवृत्तानुयोग।
आषाढ़ मास रात्रि-दिन की गणना की अपेक्षा उनतीस रात-दिन का कहा गया है । (इसी प्रकार) भाद्रपदमास, कार्तिक मास, पौष मास, फाल्गुन मास और वैशाख मास भी उनतीस-उतनीस रात-दिन के कहे गए हैं । चन्द्र दिन मुहूर्त्त गणना की अपेक्षा कुछ अधिक उनतीस मुहूर्त का कहा गया है।
प्रशस्त अध्यवसान (परिणाम) से युक्त सम्यग्दृष्टि भव्य जीव तीर्थंकरनाम-सहित नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों को बाँधकर नियम से वैमानिक देवों में देवरूप से उत्पन्न होता है।
प्रभा पथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है। अधस्तन सातवी पथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस सागरोपम की है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम है । उपरिम-मध्यमग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम है । जो देव उपरिम-अधस्तनौवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम है। वे देव उनतीस अर्धमासों के बाद आन-प्राण या उच्छवास-निःश्वास लेते हैं। उन देवों के उनतीस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उनतीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-२९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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