________________
आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-८
सूत्र-८
आठ मदस्थान कहे गए हैं । जैसे-जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद । आठ प्रवचन-माताएं कही गई हैं । जैसे-ईयासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-भाण्ड-मात्र निक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रस्रवण-खेल सिंधारण-परिष्ठापनासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ।
वाणव्यन्तर देवों के चैत्यवृक्ष आठ योजन ऊंचे कहे गए हैं । (उत्तरकुरु में स्थित पार्थिव) जम्बूनामक सुदर्शन वृक्ष आठ योजन ऊंचा कहा गया है । (देवकुरु में स्थित) गरुड़ देव का आवासभूत पार्थिव
ऊंचा कहा गया है। जम्बदीप की जगती (प्राकार के सामान वाली) आठ योजन ऊंची कही गई है।
केवलि समुद्घात आठ समय वाला कहा गया है, जैसे-केवलि भगवान प्रथम समय में दण्ड समुद्घात करते हैं, दूसरे समय में कपाट समुद्घात करते हैं, तीसरे समय में मन्थान समुद्घात करते हैं, चौथे समय में मन्थान के अन्तरालों को पूरते हैं, अर्थात् लोकपूरण समुद्घात करते हैं । पाँचवे समय में मन्थान के अन्तराल से आत्मप्रदेशों का प्रतिसंहार (संकोच) करते हैं, छठे समय में मन्थानसमुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं, सातवे समय में कपाट समुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं और आठवे समय में दण्डसमुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं । तत्पश्चात् उनके आत्मप्रदेश शरीरप्रमाण हो जाते हैं।
पुरुषादानीय अर्थात् पुरुषों के द्वारा जिनका नाम आज भी श्रद्धा और आदर-पूर्वक स्मरण किया जाता है, ऐसे पार्श्वनाथ तीर्थंकर देव के आठ गण और आठ गणधर थे । यथासूत्र -९
शुभ, शुभघोष, वशिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र और यश । सूत्र - १०
आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्द योग करते हैं । जैसे-कृत्तिका १, रोहिणी २, पुनर्वसु ३, मघा ४, चित्रा ५, विशाखा ६, अनुराधा ७ और ज्येष्ठा ८ ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ पल्योपम की कही गई है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति आठ पल्योपम कही है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति आठ पल्योपम कही गई है।
ब्रह्मलोक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति आठ सागरोपम कही गई है। वहाँ जो देव अर्चि १, अर्चिमाली २, वैरोचन ३, प्रभंकर ४, चन्द्राभ ५, सूराभ ६, सुप्रतिष्ठाभ ७, अग्नि-अाभ ८, रिष्टाभ ९, अरुणाभ १०, और अनुत्तरावतंसक ११, नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति आठ सागरोपम कही गई है । वे देव आठ अर्धमासों (पखवाड़ों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के आठ हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव आठ भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 13