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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक जघन्य प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । न जघन्य न उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार जघन्यावगाढ़, उत्कृष्टावगाढ़ और अजघन्योत्कृष्टावगाढ़ । जघन्य स्थिति वाले, उत्कृष्ट स्थिति वाले, अजघन्योत्कृष्ट स्थिति वाले । जघन्य गुण काले, उत्कृष्ट गुण काले, अजघन्योत्कृष्ट गुण काले जानें इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है - यावत् अजघन्योत्कृष्ट गुण रूक्ष पुद्गलों की वर्गणा एक है। सूत्र- ५२
सब द्वीप समुद्रों के मध्य में रहा हुआ-यावत् जम्बूद्वीप एक है। सूत्र-५३
इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों में से अन्तिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर अकेले सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, निर्वाण प्राप्त, एवं सब दुःखों से रहित हुए। सूत्र - ५४
अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई एक हाथ की है। सूत्र- ५५
आर्द्रा नक्षत्र का एक तारा कहा गया है । चित्रा नक्षत्र का एक तारा कहा गया है । स्वाति नक्षत्र का एक तारा कहा गया है। सूत्र-५६
एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल अनन्त कहे गए हैं। इसी प्रकार एक समय की स्थिति वाले-एक गुण काले पुद् गल - यावत् एक गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गए हैं।
स्थान-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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