SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३५७ चार प्रकार के जीवों का एक शरीर आँखों से नहीं देखा जा सकता । यथा-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वनस्पतिकाय। सूत्र-३५८ चार इन्द्रियों से ज्ञान पदार्थों का सम्बन्ध होने पर ही होता है । यथा-श्रोत्रेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय। सूत्र-३५९ जीव और पुद्गल चार कारणों से लोक के बाहर नहीं जा सकते । यथा-गति का अभाव होने से, सहायता का अभाव होने से, रुक्षता से, लोक की मर्यादा होने से । सूत्र-३६० ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के हैं । यथा-जिस दृष्टान्त से अव्यक्त अर्थ व्यक्त किया जाए। जिस दृष्टान्त से वस्तु के एकदेश का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से वादी द्वारा स्थापित सिद्धान्त का निराकरण किया जाए। अव्यक्त अर्थ को व्यक्त करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं । यथा-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । विघ्न-बाधा बताने वाले दृष्टान्त । द्रव्यादि से कार्यसिद्धि बताने वाले दृष्टान्त । जिस दृष्टान्त से परमत को दूषित सिद्ध करके स्वमत को निर्दोष सिद्ध किया जाए। जिस दृष्टान्त से तत्काल उत्पन्न वस्तु का विनाश सिद्ध किया जाए। __ वस्तु के एक देश का प्रतिपादन करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं । यथा-सद्गुणों की स्तुति से गुणवान के गुणों की प्रशंसा करना । असत्कार्य में प्रवृत्त मुनि को दृष्टान्त द्वारा उपालम्भ देना । किसी जिज्ञासु का दृष्टान्त द्वारा प्रश्न पूछना । एक व्यक्ति का उदाहरण देकर दूसरे को प्रतिबोध देना। सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं । यथा-जिस दृष्टान्त से पाप कार्य करने का संकल्प पैदा हो । जिस दृष्टान्त जैसे को तैसा करना सिखाया जाए । परमत को दूषित सिद्ध करने के लिए जो दृष्टान्त दिया जाए, उसी दृष्टान्त से स्वमत भी दूषित सिद्ध हो जाए। जिस दृष्टान्त में दुर्वचनों का या अशुद्ध वाक्यों का प्रयोग किया जाए। वादी के सिद्धान्त का निराकरण करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं । यथा-वादी जिस दृष्टान्त से अपने पक्ष की स्थापना करे, प्रतिवादी भी उसी दृष्टान्त से अपने पक्ष की स्थापना करे । वादी दृष्टान्त से जिस वस्तु को सिद्ध करे प्रतिवादी उस दृष्टान्त से भिन्न वस्तु सिद्ध करे । वादी जैसा दृष्टान्त कहे प्रतिवादी को भी वैसा ही दृष्टान्त देने के लिए कहे । प्रश्नकर्ता जिस दृष्टान्त का प्रयोग करता है उत्तरदाता भी उसी दृष्टान्त का प्रयोग करता है। हेतु चार प्रकार के हैं । यथा-वादी का समय बिताने वाला हेतु । वादी द्वारा स्थापित हेतु के सदृश हेतु की स्थापना करने वाला हेतु । शब्द छल से दूसरे को व्यामोह पैदा करने वाला हेतु । धूर्त द्वारा अपहृत वस्तु को पुनः प्राप्त कर सके ऐसा हेतु। हेतु चार प्रकार के हैं । यथा-जो हेतु आत्मा द्वारा जाना जाए और जो हेतु इन्द्रियों द्वारा माना जाए। जिसके देखने से व्याप्ति का बोध हो ऐसा हेतु । यथा-धूआं देखने से अग्नि और धूएं की व्याप्ति का स्मरण होना । उपमा द्वारा समानता का बोध कराने वाला हेतु । आप्त-पुरुष कथित वचन । हेतु चार प्रकार के हैं । यथा-धूम के अस्तित्व से अग्नि का अस्तित्व सिद्ध करने वाला हेतु । अग्नि के अस्तित्व से विरोधी शीत का नास्तित्व सिद्ध करने वाला हेतु । अग्नि के अभाव में शीत का सद्भाव सिद्ध करने वाला हेतु । वृक्ष के अभाव में शाखा का अभाव सिद्ध करने वाला हेतु । सूत्र-३६१ गणित चार प्रकार का है । यथा-पाहुड़ों का गणित (पाटि गणित) । व्यवहार गणित-तोल-माप आदि । लम्बाई मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 74
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy