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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक अश्वमुखद्वीप, हस्तिमुखद्वीप, सिंहमुखद्वीप और व्याघ्रमुखद्वीप । उन द्वीपों में मनुष्य चार प्रकार के हैं-अश्वमुख, हस्तिमुख, सिंहमुख और व्याघ्रमुख । जम्बूद्वीपों की चार विदिशाओं में लवण समुद्र में सात सौ-सात सौ योजन जाने पर चार अन्तरद्वीप हैं । यथाअश्वकर्ण द्वीप, हस्तिकर्ण द्वीप, अकर्ण द्वीप और कर्णप्रवारण द्वीप । उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य हैं । यथा अश्वकर्ण, हस्तिकर्ण, अकर्ण और कर्ण प्रावरण। उन द्वीपों की चार विदिशाओं में लवण समुद्र में आठ सौ-आठ सौ योजन जाने पर चार अन्तर द्वीप हैं । यथाउल्कामुखद्वीप, मेघमुखद्वीप, विद्युन्मुखद्वीप और विद्युद्दन्तद्वीप । उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं । उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख और विद्युद्दन्तमुख । उन द्वीपों की चार विदिशाओं में लवण समुद्र में नौसो-नौसो योजन जाने पर चार द्वीप हैं । यथा-घनदन्त द्वीप, लष्टदन्त द्वीप, मूढ़दन्त द्वीप और शुद्धदन्त द्वीप । उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य हैं । यथा-घनदन्त, लष्ट-दन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में और शिखरी वर्षधर पर्वत की चार विदिशाओं में लवण समुद्र में तीनसौ - तीनसौ योजन जाने पर चार अन्तरद्वीप हैं । अन्तरद्वीपों के नाम इसी सूत्र के उपसूत्र के समान समझें। सूत्र- ३२५ जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) चार दिशाओं में लवण समुद्र में ९५००० योजन जाने पर महाघटाकार चार महापातालकलश हैं । यथा-वलयामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर । इन चार महापाताल कलशों में पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं । यथा-काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन। जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) चार दिशाओं में लवण समुद्र में ४२,००० योजन जाने पर चार वेलंधर नागराजाओं के चार आवास पर्वत हैं । यथा-गोस्तुभ, उदकभास, शंख, दकसीम । इन चार आवास पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं । यथा-गोस्तूप, शिवक, शंख और मनशील । जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से चार विदिशाओं में लवण समुद्र में ४२,००० योजन जाने पर अनुवेलंधर नागराजाओं के चार आवास पर्वत हैं । यथा-कर्कोटक, कर्दमक, केलाश और अरुणप्रभ । उन चार आवास पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं । यथा-इन देवों के नाम पर्वतों के समान हैं। __ लवण समुद्र में चार चन्द्रमा अतीत में प्रकाशित हुए थे वर्तमान में प्रकाशित होते हैं और भविष्य में प्रकाशित होंगे । लवण समुद्र में सूर्य अतीत में तपे थे वर्तमान में तपते हैं और भविष्य में तपेंगे । इसी प्रकार चार कृतिका-यावत्चारभाव केतु पर्यन्त सूत्र कहें। लवण समुद्र के चार द्वार हैं इनके नाम जम्बूद्वीप के द्वारों के समान हैं । इस द्वारों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। उनके नाम भी जम्बूद्वीप समान हैं। सूत्र-३२६ धातकीखण्ड द्वीप का वलयाकार विष्कम्भ चार लाख योजन का है। जम्बूद्वीप के बाहर चार भरत क्षेत्र और चार ऐरवत क्षेत्र है। इसी प्रकार पुष्करार्धद्वीप के पूर्वार्ध पर्यन्त द्वीतिय स्थान उद्देशक तीन में उक्त मेरुचूलिका तक के पाठ की पुनरावृत्ति करें, और उसमें सर्वत्र चार की संख्या कहें। सूत्र- ३२७, ३२८ वलयाकार विष्कम्भ वाले नन्दीश्वर द्वीप के मध्य चारों दिशाओं में चार अंजनक पर्वत हैं । यथा-पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में । वे अंजनक पर्वत ८४,००० योजन ऊंचे हैं और एक हजार योजन भूमि में गहरे हैं। उन पर्वतों के मूल का विष्कम्भ दस हजार योजन का है। फिर क्रमशः कम होते होते ऊपर का विष्कम्भ एक हजार योजन का है। उन पर्वतों की परिधि मूल में इकतीस हजार छसो तेईस योजन की है। फिर क्रमशः कम होते होते ऊपर की परिधि तीन हजार एक सौ छासठ योजन की है। वे पर्वत मूल में विस्तृत, मध्य में संकरे और ऊपर पतले मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 63
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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