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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सिंह के समान पिंगल नेत्र वाला हाथी मंद प्रकृति का होता है। सूत्र - २९८ कृश शरीर और कृश ग्रीवा वाला, पतले चर्म, नख, दाँत एवं केश वाला, भयभीत, स्थिरकर्ण, उद्विग्नता पूर्वक गमन करने वाला स्वयं त्रस्त और अन्यों को त्रास देने वाला हाथी मृग प्रकृति का होता है। सूत्र - २९९ जिस हाथी में भद्र, मंद और मृग प्रकृति के हाथियों के थोड़े थोड़े लक्षण हों तथा विचित्र रूप और शील वाला हाथी संकीर्ण प्रकृति का होता है। सूत्र- ३०० भद्र जाति का हाथी शरद् ऋतु में मतवाला होता है, मंद जाति का हाथी वसंत ऋतु में मतवाला होता है, मृग जाति का हाथी हेमंत ऋतु में मतवाला होता है, और संकीर्ण जाति का हाथी किसी भी ऋतु में मतवाला हो सकता है। सूत्र-३०१ विकथा चार प्रकार की हैं यथा-स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा और राजकथा । स्त्रीकथा चार प्रकार की है-स्त्रियों की जाति सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की कुल सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की रूप सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की नेपथ्य सम्बन्धी कथा। भक्तकथा चार प्रकार की हैं-यथा भोजन सामग्री की कथा, विवध प्रकार के पकवानों और व्यञ्जनों की कथा, भोजन बनाने की विधियों की कथा, भोजन निर्माण में होने वाले व्यय की कथा। देशकथा चार प्रकार की है-देश के विस्तार की कथा, देश में उत्पन्न होने वाले धान्य आदि की कथा, देशवासियों के कर्तव्याकर्तव्य की कथा, देशवासियों के नेपथ्य की कथा। राजकथा चार प्रकार की है, यथा-राजा के नगर-प्रवेश की कथा, राजा के नगर-प्रयाण की कथा, राजा के बल-वाहन की कथा, राजा के कोठार की कथा। धर्मकथा चार प्रकार की है-आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निर्वेदनी । आक्षेपणी कथा चार प्रकार की है, यथा-आचारआक्षेपणी-साधुओं का आचार बताने वाली कथा, व्यवहार आक्षेपणी-दोषनिवारणार्थ प्रायश्चित्त के भेद प्रभेद बताने वाली कथा, प्रज्ञप्ति आक्षेपणी-संशयनिवारणार्थ कही जाने वाली कथा । दृष्टिवाद आक्षेपणी-श्रोताओं को समझकर नयानुसार सूक्ष्म तत्त्वों का विवेचन करने वाली कथा। विक्षेपणी कथा चार प्रकार की है, यथा-स्व सिद्धान्त के गुणों का कथन करके पर सिद्धान्त के दोष बताना, पर-सिद्धान्त का खण्डन करके स्व-सिद्धान्त की स्थापना करना, परसिद्धान्त की अच्छाईयाँ बताकर पर-सिद्धान्त की बूराईयाँ भी बताना, पर-सिद्धान्त की मिथ्या बातें बताकर सच्ची बातों की स्थापना करना। संवेदनी कथा चार प्रकार की है, यथा-इहलोक संवेदनी-मनुष्य देह की नश्वरता बताकर वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा, परलोक संवेदनी-मुक्ति की साधना में भोग-प्रधान देव जीवन की निरुपयोगिता बताने वाली कथा, आत्शरीर संवेदनी-स्वशरीर को अशुचिमय बताने वाली कथा, परशरीर संवेदनी-दूसरों के शरीर को नश्वर बताने वाली कथा। निर्वेदनी कथा चार प्रकार की है, इस जन्म में किये गए दुष्कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, इस जन्म में किये गए दुष्कर्मों का फल परजन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, परजन्म में किये गए दुष्कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, परजन्म में किये गए दुष्कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, परजन्म कृत दुष्कर्मों का फल परजन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा। इस जन्म में किये गए सत्कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, इस जन्म में किये गए सत्कर्मों का फल परजन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा, परजन्म कृत सत्कर्मों का फल इस जन्म में मिलता हैयह बताने वाली कथा, परजन्म कृत सत्कर्मों का फल परजन्म में मिलता है-यह बताने वाली कथा। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 57
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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