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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक कूटागारशाला चार प्रकार की है । वे इस प्रकार है-गुप्त है और गुप्त द्वारवाली है । गुप्त है किन्तु गुप्त द्वार वाली नहीं है । अगुप्त है किन्तु गुप्त द्वारवाली है । अगुप्त भी है और गुप्त द्वारवाली भी नहीं है । इसी प्रकार स्त्री समुदाय चार प्रकार का है । एक गुप्ता है-वस्त्रावृता है और गुप्तेन्द्रिया है । एक गुप्ता है-वस्त्रावृता है किन्तु गुप्तेन्द्रिया नहीं है । एक अगुप्ता है-वस्त्रादि से अनावृत है किन्तु गुप्तेन्द्रिया है । एक अगुप्ता भी है और अगुप्तेन्द्रिया भी है। सूत्र - २९० अवगाहना (शरीर का प्रमाण) चार प्रकार की हैं, यह इस प्रकार की हैं द्रव्यावगाहना-अनंतद्रव्ययुता, क्षेत्रावगाहना-असंख्यप्रदेशागाढ़ा, कालावगाहना-असंख्यसमय-स्थितिका, भावावगाहना-वर्णादिअनंतगुणयुता। सूत्र - २९१ चार प्रज्ञप्तियाँ अङ्गबाह्य हैं। उनके नाम ये हैं-चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसारणप्रज्ञप्ति स्थान-४ - उद्देशक-२ सूत्र - २९२ प्रतिसंलीन पुरुष चार प्रकार के हैं । क्रोधप्रतिसंलीत-क्रोध का निरोध करने वाला । मानप्रतिसंलीत-मान का निरोध करने वाला । मायाप्रतिसंलीत-माया का निरोध करने वाला । लोभप्रतिसंलीत-लोभ का निरोध करने वाला। अप्रतिसंलीन (कषाय का निरोध न करने वाला) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं । क्रोध अप्रतिसंलीन, मान अप्रतिसंलीन, माया अप्रतिसंलीन और लोभ अप्रतिसंलीन। प्रतिसंलीन (प्रशस्त प्रवृत्तियों में प्रवृत्त और अप्रशस्त प्रवृत्तियों से निवृत्त) पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । मन प्रतिसंलीन, वचन प्रतिसंलीन, काय प्रतिसंलीन और इन्द्रिय प्रतिसंलीन । अप्रतिसंलीन (अप्रशस्त कार्यों में प्रवृत्त और प्रशस्त कार्यों से उदासीन) पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । मन अप्रतिसंलीन, वचन अप्रतिसंलीन, काय अप्रतिसंलीन और इन्द्रिय अप्रतिसंलीन । सूत्र- २९३ पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । एक पुरुष दीन है (धनहीन है) और दीन है (हीनमना है) । एक पुरुष दीन है (धनहीन है) किन्तु अदीन है (महामना है) । एक पुरुष अदीन है (धनी है) किन्तु दीन है (हीनमना है) । एक पुरुष अदीन है (धनी है) और अदीन (महामना भी है) । पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । पुरुष दीन है (प्रारम्भिक जीवन में भी निर्धन है) और दीन है (अंतिम जीवन में भी निर्धन है) । एक पुरुष दीन है (प्रारम्भिक जीवन में निर्धन है) किन्तु अदीन भी है (अंतिम जीवन में धनी हो जाता है) । एक पुरुष अदीन है (प्रारम्भिक जीवन में धनी है) किन्तु दीन भी है (अन्तिम जीवन में निर्धन हो जाता है) । एक पुरुष अदीन है (प्रारम्भिक जीवन में भी धनी है) और अदीन है (अन्तिम जीवन में भी धनी ही रहता है)। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । एक पुरुष दीन है (शरीर से कृश है) और दीन परिणति वाला है (कायर है) । एक पुरुष दीन है (शरीर से कृश है) किन्तु अदीन परिणति वाला है (शूरवीर है) । एक पुरुष अदीन है (हृष्ट-पुष्ट है) किन्तु दीन परिणतिवाला है (कायर है) । एक पुरुष अदीन भी (हृष्ट-पुष्ट है) और अदीन परिणीत वाला भी है (शूरवीर भी है)। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । एक पुरुष दीन है (शरीर से कृश है) और दीन रूप भी है (मलिन वस्त्र वाला है)। एक पुरुष दीन है (शरीर से कृश है) किन्तु अदीन रूप है (वस्त्र आदि से सुसज्जित है) । एक पुरुष अदीन है (शरीर से हृष्ट-पुष्ट है) किन्तु दीन रूप है (मलिन वस्त्र वाला है) । एक पुरुष अदीन है (शरीर से हृष्ट-पुष्ट है) और अदीन रूप भी है (वस्त्र आदि से सुसज्जित है) । इसी प्रकार दीनमन, दीनसंकल्प, दीनप्रज्ञा, दीनदृष्टि, दीनशीला-चार, दीनव्यवहार, दीनपराक्रम, दीनवृत्ति, दीन जाति, दीनभासी, दीनावभासी, दीनसेवी और दीनपरिवारी के चार-चार भंग जानें । सूत्र - २९४ पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। एक पुरुष आर्य है (क्षेत्र से आर्य) और आर्य है (आचरण से भी आर्य है) । एक पुर मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 55
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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