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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक तीन प्रकार के सम्यक् हैं, ज्ञान सम्यक्, दर्शन सम्यक् और चारित्र सम्यक् । तीन प्रकार के उपघात कहे गए हैं, उद्गमोपघात, उत्पादनोपघात और एषणोपघात । इसी तरह तीन प्रकार की विशुद्धि कही गई है, यथा-उद्गम विशुद्धि आदि । सूत्र- २०९ तीन प्रकार की आराधना कही गई है, यथा-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना । ज्ञानाराधना तीन प्रकार की कही गई है, यथा-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । इसी तरह दर्शन आराधना और चारित्र आराधना कहनी चाहिए। तीन प्रकार का संक्लेश कहा गया है, ज्ञानसंक्लेश, दर्शनसंक्लेश और चारित्रसंक्लेश । इसी तरह असंक्लेश, अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार भी समझने चाहिए। तीन का अतिक्रमण करने पर आलोचना करनी चाहिए, प्रतिक्रमण करना चाहिए, निन्दा करनी चाहिए, गर्दा करनी चाहिए यावत्-तप अंगीकार करना चाहिए, यथा-ज्ञान का अतिक्रमण करने पर, दर्शन का अतिक्रमण करने पर, चारित्र का अतिक्रमण करने पर । इसी तरह व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार करने पर भी आलोचनादि करनी चाहिए। सूत्र - २१० प्रायश्चित्त तीन प्रकार का कहा गया है, यथा-आलोचना के योग्य, प्रतिक्रमण के योग्य, उभय योग्य । सूत्र - २११ जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा-हेमवत, हरिवास और देवकुरु । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तीन अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा-उत्तरकुरु, रम्यक्वास और हिरण्यवत । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन क्षेत्र कहे गए हैं, यथा-भरत, हेमवत और हरिवास । जम्बूद्वीप-वर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तीन क्षेत्र कहे गए हैं, यथा-रम्यक्वास, हिरण्यवास और ऐरवत । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन वर्षधर पर्वत हैं, यथा-लघुहिमवान, महाहिमवान और निषध । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तीन वर्षधर पर्वत हैं, यथा-नीलवान, रुक्मी और शिखरी। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन महाह्रद हैं, यथा-पद्मह्रद, महापद्मह्रद और तिगिच्छह्रद । वहाँ तीन महर्द्धिक यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली तीन देवियाँ रहती हैं, यथा-श्री, ह्री और धृति । इसी तरह उत्तर में भी तीन ह्रद हैं, यथा-केशरी ह्रद, महापुण्डरीक ह्रद और पुण्डरीक ह्रद । इन ह्रदों में रहने वाली देवियों के नाम, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में लघु हिमवान वर्षधर पर्वत के पद्मह्रद नामक महाह्रद से तीन महा-नदियाँ नीकलती हैं, यथा-गंगा, सिन्धु और रोहितांशा । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में शिखरीवर्षधर पर्वत के पौण्डरीक नामक महाह्रद से तीन महानदियाँ नीकलती हैं, यथा-सुवर्णकुला, रक्ता और रक्तवती । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में तीन अन्तर नदियाँ कही गई हैं, यथा-तप्तजला, मत्तजला और उन्मत्तजला। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दक्षिण में तीन अन्तर नदियाँ हैं, क्षीरोदा, शीतस्रोता और अन्तर्वाहिनी । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के उत्तर में तीन अन्तर नदियाँ हैं, फेनमालिनी और गंभीरमालिनी । इस प्रकार धातकी खण्डद्वीप के पूर्वार्ध में अकर्मभूमियों से लगाकर अन्तर नदियों तक यावत् अर्धपुष्कर द्वीप के पश्चिमार्ध में भी इसी प्रकार जानना। सूत्र - २१२ तीन कारणों से पृथ्वी का थोड़ा भाग चलायमान होता है, यथा-रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे बादर पुद्गल आकर लगे या वहाँ से अलग होवे तो वे लगने या अलग होने वाले बादर पुद्गल पृथ्वी के कुछ भाग को चलायमान करते हैं, महा ऋद्धि वाला यावत् महेश कहा जाने वाला महोरग देव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे आवागमन करे तो पृथ्वी चलायमान होती है, नागकुमार तथा सुवर्णकुमार का संग्राम होने पर थोड़ी पृथ्वी चलायमान होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 42
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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