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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक से दूसरे स्थान पर संक्रमण करके जाते हुए।
तीन कारणों से देव विद्युत चमकाते हैं, यथा-वैक्रिय करते हुए, विषय-सेवन करते हुए तथारूप श्रमण-माहन को ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पौरुष पराक्रम बताते हुए।
तीन कारणों से देव मेघ गर्जना करते हैं, यथा-वैक्रिय करते हुए जिस प्रकार विद्युत् चमकाने के लिए कहा वैसा ही मेघ गर्जना के लिए भी समझना चाहिए। सूत्र - १४२
तीन कारणों से (तीन प्रसंगों पर) लोक में अन्धकार होता है, यथा-अर्हन्त भगवान के निर्वाण-प्राप्त होने पर अर्हन्त-प्ररूपित धर्म (तीर्थ) के विच्छिन्न होने पर, पूर्वगत श्रुत के विच्छिन्न होने पर ।
तीन कारणों से लोक में उद्योत होता है, यथा-अर्हन्त के जन्म धारण करते समय, अर्हन्त के प्रव्रज्या अंगीकार करते समय, अर्हन्त भगवान के केवलज्ञान महोत्सव समय ।
तीन कारणों से देव-भवनों में भी अन्धकार होता है, यथा-अर्हन्त भगवान के निर्वाण प्राप्त होने पर, अर्हन्त प्ररूपित धर्म को विच्छेद होने पर, पूर्वगत श्रुत के विच्छिन्न होने पर ।
तीन प्रसंगों पर देवलोक में विशेष उद्योत होता है, यथा-अर्हन्त भगवंतों के जन्म महोत्सव पर, अर्हन्तों के दीक्षा महोत्सव पर, अर्हन्तों के केवलज्ञान महोत्सव पर ।
तीन प्रसंगों पर देव इस पृथ्वी पर आते हैं, यथा-अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान महोत्सव पर । इसी तरह देवताओं का समूह रूप में एकत्रित होना और देवताओं का हर्षनाद भी समझना चाहिए।
तीन प्रसंगों पर देवेन्द्र मनुष्य लोक में शीघ्र आते हैं, यथा-अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान महोत्सव पर । इसी प्रकार सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल देव, अग्रमहिषी देवियों की पर्षद के देव, सेनाधिपति देव, आत्मरक्षक देव मनुष्य-लोक में शीघ्र आते हैं।
तीन प्रसंगों पर देव सिंहासन से उठते हैं, यथा-अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान-प्रसंग महोत्सव पर । इसी तरह तीन प्रसंगों पर उनके आसन चलायमान होते हैं, वे सिंहनाद करते हैं और वस्त्र-वृष्टि करते हैं।
तीन प्रसंगों पर देवताओं के चैत्यवृक्ष चलायमान होते हैं, यथा-अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर । उनके दीक्षा महोत्सव पर, केवलज्ञान महोत्सव पर ।
तीन प्रसंगों पर लोकान्तिक देव मनुष्य-लोक में शीघ्र आते हैं, यथा-अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान महोत्सव पर । सूत्र-१४३
हे आयुष्मन् श्रमणों ! तीन व्यक्तियों पर प्रत्युपकार कठिन है, यथा-माता-पिता, स्वामी (पोषक) और धर्माचार्य । कोई पुरुष (प्रतिदिन) प्रातःकाल होते ही माता-पिता को शतपाक, सहस्रपाक तेल से मर्दन करके सुगन्धित उबटन लगाकर तीन प्रकार के (गन्धोदक, उष्णोदक, शीतोदक) जल से स्नान करा कर, सर्व अलंकारों से विभूषित करके मनोज्ञ, हांडी में पकाया हुआ, शुद्ध अठारह प्रकार के व्यंजनों से युक्त भोजन जिमाकर यावज्जीवन कावड़ में बिठाकर कंधे पर लेकर फिरता रहे तो भी उपकार का बदला नहीं चूका सकता है किन्तु वह माता-पिता को केवलि प्ररूपित धर्म बताकर, समझाकर और प्ररूपणा कर उसमें स्थापित करे तो वह उन माता-पिता के उपकार का सुचारु रूप से बदला चूका सकता है।
कोई महाऋद्धि वाला पुरुष किसी दरिद्र को धन आदि देकर उन्नत बनाए तदनन्तर वह दरिद्र धनादि से समृद्ध बनने पर उस सेठ के असमक्ष अथवा समक्ष ही विपुल भोग सामग्री से युक्त होकर विचरता हो, इसके बाद वह ऋद्धि वाला पुरुष कदाचित् (दैवयोग से) दरिद्र बन कर उस (पूर्व के) दरिद्र के पास शीघ्र आवे उस समय वह (पहले का)
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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