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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-९५३
गति दश प्रकार की है, यथा-नरक गति, नरक की विग्रहगति, तिर्यंचगति, तिर्यंच की विग्रहगति, मनुष्य-गति, मनुष्य विग्रहगति, देवगति, देव विग्रहगति, सिद्धगति, सिद्ध विग्रहगति । सूत्र-९५४
मुण्ड दस प्रकार के हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड यावत् स्पर्शेन्द्रिय मुण्ड, क्रोध मुण्ड यावत् लोभ मुण्ड, सिरमुण्ड । सूत्र- ९५५, ९५६
संख्यान-गणित दस प्रकार के हैं, यथा- परिकर्म गणित-अनेक प्रकार की गणित का संकलन करना । व्यवहारगणित-श्रेणी आदि का व्यवहार । रज्जूगणित-क्षेत्रगणित, राशिगणित-त्रिराशि आदि, कलांसवर्ण गणितकला अंशों का समीकरण । गुणाकारा गणित-संख्याओं का गुणाकार करना, वर्ग गणित-समान संख्या को समान संख्या से गुणा करना । घन गणित-समान संख्या को समान संख्या से दो बार गुणा करना, यथा-दो का धन आठ, वर्गवर्ग गणित-वर्ग का वर्ग से गुणा करना, यथा-दो का वर्ग चार और चार का वर्ग सोलह । यह वर्ग-वर्ग है । कल्प गणितछेद गणित करके काष्ठ का करवत से छेदन करना। सूत्र-९५७,९५८
प्रत्याख्यान दस प्रकार के हैं, यथा- अनागत प्रत्याख्यान-भविष्य में तप करने से आचार्यादि की सेवा में बाधा आने की सम्भावना होने पर पहले तप कर लेना । अतिक्रान्त प्रत्याख्यान-आचार्यादि की सेवा में किसी प्रकार की बाधा न आवे इस संकल्प से जो तप अतीत में नहीं किया जा सका उस तप को वर्तमान में करना । कोटी सहित प्रत्याख्यान-एक तप के अन्त में दूसरा तप आरम्भ कर देना । नियंत्रित प्रत्याख्यान-पहले से यह निश्चित कर लेना कि कैसी भी परिस्थिति हो किन्तु मुझे अमुक दिन अमुक तप करना ही है । सागार प्रत्याख्यान-जो तप आगार सहित किया जाए। अनागार प्रत्याख्यान-जिस तप में महत्तरागारेण आदि आगार न रखे जाए। परिणाम कृत प्रत्याख्यानजिस तप में दत्ति, कवल, घर और भिक्षा का परिमाण करना । निरवशेष प्रत्याख्यान-सर्व प्रकार के अशनादि का त्याग करना । सांकेतिक प्रत्याख्यान-अंगुष्ठ, मुष्टि आदि के संकेत से प्रत्याख्यान करना । अद्धा प्रत्याख्यान-पोरसी आदि काल विभाग से प्रत्याख्यान करना। सूत्र-९५९, ९६०
सामाचारी दस प्रकार की है, यथा- ईच्छाकार समाचारी-स्वेच्छापूर्वक जो क्रिया कि जाए और उसके लिए गुरु से आज्ञा प्राप्त कर ली जाए । मिच्छाकार समाचारी-मेरा दुष्कृत मिथ्या हो इस प्रकार की क्रिया करना । तथाकार समाचारी-आपका कहना यथार्थ है इस प्रकार कहना । आवश्यिका समाचारी-आवश्यक कार्य है ऐसा कहकर बाहर जाना । नैषधकी समाचारी-बाहर से आने के बाद अब मैं गमनागमन बन्द करता हूँ ऐसा कहना । आपृच्छना समाचारी-सभी क्रियाएं गुरु को पूछ कर के करना । प्रतिपृच्छा समाचारी-पहले जिस क्रिया के लिए गुरु की आज्ञा प्राप्त न हुई हो और उसी प्रकार की क्रिया करना आवश्यक हो तो पुनः गुरु आज्ञा प्राप्त करना । छंदना समाचारी-लाई हुई भिक्षा में से किसी को कुछ आवश्यक हो तो लो ऐसा कहना । निमन्त्रणा समाचारी-मैं आपके लिए आहारादि लाऊं? इस प्रकार गुरु से पूछना । उपसंपदा समाचारी-ज्ञानादि की प्राप्ति के लिए गच्छ छोड़कर अन्य साधु के आश्रयमें रहना सूत्र - ९६१
श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुए । यथा-प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड़ जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए। द्वीतिय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, चौथे स्वप्न में सर्व रत्नमय मोटी मालाओं की एक जोड़ी को देखकर जागृत हुए, पाँचवे स्वप्न में श्वेत गायों के एक समूह को देखकर जागृत हुए, छठे स्वप्न में कमल फूलों से आच्छादित एक महान पद्म सरोवर को देखकर जागृत हुए, सातवे स्वप्न में एक सहस्त्र तरंगी महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ जानकर जागृत हुए
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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