SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक होंगे यावत्-कहे गए भगवान महावीर के वर्णन के समान कहें । वे विमलवाहन भगवानसूत्र-८७३ कांस्यपात्र के समान अलिप्त, शंख के समान निर्मल, जीव के समान अप्रतिहत गति, गगन के समान आलम्बन रहित, वायु के समान अप्रतिबद्ध विहारी, शरद ऋतु के जल के समान स्वच्छ हृदय वाले, पद्मपत्र के समान अलिप्त, कूर्म के समान गुप्तेन्द्रिय, पक्षी के समान एकाकी, गेंडा के सींग के समान एकाकी, भारंड पक्षी के समान अप्रमत्त, हाथी के समान धैर्यवान । यथासूत्र-८७४ वृषभ के समान बलवान, सिंह के समान दुर्धर्ष, मेरु के समान निश्चल, समुद्र के समान गम्भीर, चन्द्र के समान शीतल, सूर्य के समान उज्ज्वल, शुद्ध स्वर्ण के समान सुन्दर, पृथ्वी के समान सहिष्णु, आहुति के समान प्रदीप्त अग्नि के समान ज्ञानादि गुणों से तेजस्वी होंगे। सूत्र-८७५ उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा-अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक । ये अण्डज-हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज-हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक-मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं । ये प्रग्रहिक-पात्र आदि मेरे हैं । ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस-जिस दिशा में विचरना चाहेंगे उस-उस दिशा में स्वेच्छापूर्वक शुद्ध भाव से, गर्वरहित तथा सर्वथा ममत्व रहित होकर संयम से आत्मा को पवित्र करते हुए विचरेंगे । उन विमलवाहन भगवान को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वसति और विहार की उत्कृष्ट आराधना करने से सरलता, मृदुता, लघुता, क्षमा, निर्लोभता, मन, वचन, काया की गुप्ति, सत्य, संयम, तप, शौच और निर्वाण मार्ग की विवेकपूर्वक आराधना करने से शुक्ल-ध्यान ध्याते हुए अनन्त, सर्वोत्कृष्ट बाधा रहित यावत्-केवल ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होगा तब वे भगवान अर्हन्त एवं जिन होंगे। केवलज्ञान-दर्शन से वे देव, मनुष्यों एवं असुरों से परिपूर्ण लोक के समस्त पर्यायों को देखेंगे । सम्पूर्ण लोक के सभी जीवों की आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, तर्क, मानसिक भाव, मुक्त, कृत, सेवित प्रगट कर्मों और गुप्त कर्मों को जानेंगे अर्थात् उनसे कोई कार्य छिपा नहीं रहेगा । वे पूज्य भगवान सम्पूर्ण लोक में उस समय के मन, वचन और कायिक योग में वर्तमान सर्व जीवों के सर्व भावों को देखते हुए विचरेंगे । उस समय वे भगवान केवलज्ञान, केवल दर्शन से समस्त लोक को जानकर श्रमण निर्ग्रन्थों के पच्चीस भावना सहित पाँच महाव्रतों का तथा छ जीवनिकाय धर्म का उपदेश देंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहा है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहेंगे। हे आर्यो! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहे हैं उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहेंगे, यथा-राग बन्धन और द्वेष बन्धन । हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहे हैं, उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहेंगे, यथा-मनदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड । इस प्रकार चार कषाय, पाँच कामगुण, छ जीवनिकाय, सात भयस्थान, आठ मदस्थान, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति, दश श्रमणधर्म यावत् तैंतीस आशातना पर्यन्त कहें। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का नग्नभाव, मुण्डभाव, अस्नान, अदन्तधावन, छत्ररहित रहना जूते न पहनना, भू-शय्या, फलक शय्या, काष्ठ शय्या, केश लोच, ब्रह्मचर्य पालन, गृहस्थ के घर से आहार आदि लेना, मान-अपमान में समान रहना आदि की प्ररूपणा करेंगे। हे आर्यो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों को आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूर्वक, पूतिक, क्रीत, अप-मित्यक, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वछलिका भक्त, प्राधूर्णक, मूल-भोजन, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 140
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy