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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक इसी प्रकार पाणैषणा भी सात प्रकार की कही गई है। अवग्रह प्रतिमा सात प्रकार की कही गई है । यथा- मुझे अमुक उपाश्रय ही चाहिए ऐसा निश्चय करके आज्ञा माँगे। मेरे साथी साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना करूँगा और उनके लिए जो उपाश्रय मिलेगा उसी में मैं रहूँगा । मैं अन्य साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना करूँगा किन्तु मैं उसमें नहीं रहूँगा । मैं अन्य साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना नहीं करूँगा किन्तु अन्य साधुओं द्वारा याचित उपाश्रय में मैं रहूँगा । मैं अपने लिए ही उपाश्रय की याचना करूँगा अन्य के लिए नहीं । मैं जिसके घर (उपाश्रय) में ठहरूँगा उसी के यहाँ से संस्तारक भी प्राप्त होगा तो उस पर सोऊंगा अन्यथा बिना संस्तारक के ही रात बिताऊंगा । मैं जिस घर में (उपाश्रय) में ठहरूँगा उसमें पहले से बिछा हुआ संस्तारक होगा तो उसका उपयोग करूँगा। सप्तैकक सात प्रकार का कहा गया है । यथा-स्थान सप्तैकक, नैषेधिकी सप्तैकक, उच्चारप्रश्रवण विधि सप्तकक, शब्द सप्तकक, रूप सप्तकक, परक्रिया सप्तकक, अन्योन्य क्रिया सप्तैकक। सात महा अध्ययन कहे गए हैं। सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना ४९ अहोरात्रमें होती है उसमें सूत्रानुसार यावत्-१९६ दत्ति ली जाती है। सूत्र - ५९७ अधोलोक में सात पृथ्वीयाँ हैं । सात घनोदधि हैं । सात घनवात और सात तनुवात हैं । सात अवकाशान्तर हैं। इन सात अवकाशान्तरों में सात तनुवात प्रतिष्ठित हैं । इन सात तनुवातोंमें सात घनवात प्रतिष्ठित हैं । इन सात घनवातों में सात घनोदधि प्रतिष्ठित हैं। इन सात घनोदधियों में पुष्पभरी छाबड़ी के समान संस्थान वाली सात पृथ्वीयाँ हैं । यथा-प्रथमा यावत् सप्तमा । इन सात पृथ्वीयों के सात नाम हैं । यथा-धम्मा, वंसा, सेला, अंजना, रिष्ठा, मघा, माघवती । इन सात पृथ्वीयों के सात गोत्र हैं । यथा-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, तमस्तमाप्रभा। सूत्र- ५९८ बादर (स्थूल) वायुकाय सात प्रकार की कही गई है । यथा-पूर्व का वायु, पश्चिम का वायु, दक्षिण का वायु, उत्तर का वायु, ऊर्ध्व दिशा का वायु, अधोदिशा का वायु, विविध दिशाओं का वायु । सूत्र- ५९९ संस्थान सात प्रकार के हैं । यथा-१. दीर्घ, २. ह्रस्व, ३. वृत्त, ४. त्र्यस्र, ५. चतुरस्र, ६. पृथुल और ७. परिमण्डल। सूत्र- ६०० भयस्थान सात प्रकार के कहे गए हैं । यथा-इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकस्मात भय, वेदना भय, मरण भय, अश्लोक-अपयश भय । सूत्र-६०१ सात कारणों से छद्मस्थ (असर्वज्ञ) जाना जाता है । यथा-हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, अदत्त लेने वाला, शब्द, रूप, रस और स्पर्श को भोगने वाला, पूजा और सत्कार से प्रसन्न होने वाला | यह आधाकर्म आहार सावध (पापरहित) है। इस प्रकार की प्ररूपणा करने के पश्चात् भी आधाकर्म आदि दोषों का सेवन करने वाला । कथनी के समान करणी न करने वाला। सात कारणों से केवली जाना जाता है, यथा-हिंसा न करने वाला । झूठ न बोलने वाला । अदत्त न लेनेवाला। शब्द, गन्ध, रूप, रस और स्पर्श को न भोगने वाला । पूजा और सत्कार से प्रसन्न न होने वाला यावत् कथनी के समान करणी करने वाला। सूत्र-६०२ मूल गोत्र सात कहे जाते हैं, यथा-काश्यप, गौतम, वत्स, कुत्स, कौशिक, मांडव, वाशिष्ठ । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 115
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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