SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-४८७ शौच पाँच प्रकार का है, पृथ्वीशौच, जलशौच, अग्निशौच, मंत्रशौच और ब्रह्मशौच । सूत्र-४८८ इन पाँच स्थानों को छद्मस्थ पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है । यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति-काय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित जीव, परमाणुपुद्गल । किन्तु इन्हीं पाँचों स्थानों को केवलज्ञानी पूर्णरूप से जानते हैं और देखते हैं, यथा-धर्मास्तिकाय यावत् परमाणु पुद्गल । सूत्र-४८९ अधोलोक में पाँच भयंकर बड़ी नरके हैं । यथा-काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान-ऊर्ध्व लोक में पाँच महाविमान हैं, यथा-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजयंत, सर्वार्थसिद्धमहाविमान । सूत्र-४९० पुरुष पाँच प्रकार के हैं, यथा-ह्री सत्व-लज्जा से धैर्य रखने वाला, ही मन सत्व-लज्जा से मन में धैर्य रखने वाला, चल सत्व-अस्थिर चित्त वाला, स्थिर सत्व-स्थिर चित्त वाला, उदात्त सत्व-बढ़ते हुए धैर्य वाला। सूत्र-४९१ ___ मत्स्य पाँच प्रकार के हैं,-अनुश्रोतचारी-प्रवाह के अनुसार चलनेवाला, प्रतिश्रोतचारी-प्रवाह के सामने जाने वाला । अंतचारी-किनारे किनारे चलने वाला, प्रान्तचारी-प्रवाह के मध्य में चलने वाला, सर्वचारी-सर्वत्र चलने वाला। इसी प्रकार भिक्षु पाँच प्रकार के हैं, यथा-अनुश्रोतचारी-यावत्-सर्वश्रोतचारी । उपाश्रय से भिक्षाचर्या प्रारम्भ करने वाला, दूर से भिक्षाचार्य प्रारम्भ करके उपाश्रय तक आने वाला, गाँव के किनारे बसे हुए घरों से भिक्षा लेने वाला, गाँव के मध्य में बसे हुए घरों से भिक्षा लेने वाला, सभी घरों से भिक्षा लेने वाला। सूत्र - ४९२ वनीपक-याचक पाँच प्रकार के हैं, यथा-अतिथिवनीपक, दरिद्रीवनीपक, ब्राह्मणवनीपक, श्वानवनीपक, श्रमणवनीपक। सूत्र-४९३ पाँच कारणों से अचेलक प्रशस्त होता है, यथा-अल्पप्रत्युपेक्षा-अल्प उपधि होने से अल्प-प्रतिलेखन होता है प्रशस्त लाघव-अल्प उपधि होने से अल्पराग होता है । वैश्वासिक रूप-विश्वास पैदा करने वाला वेष । अनुज्ञात तपजिनेश्वर सम्मत अल्प उपधि रूप तप । विपुल इन्द्रिय निग्रह-इन्द्रियों का महान् निग्रह । सूत्र - ४९४ उत्कट पुरुष पाँच प्रकार के हैं, यथा-दण्ड उत्कट-अपराध करने पर कठोर दण्ड देने वाला । राज्योत्कटऐश्वर्य में उत्कृष्ट । स्तेन उत्कट-चोरी करने में उत्कृष्ट । देशोत्कट-देश में उत्कृष्ट । सर्वोत्कट-सब से उत्कृष्ट । सूत्र - ४९५ समितियाँ पाँच हैं, यथा-इर्या समिति यावत् पारिष्ठापनिका समिति । सूत्र-४९६ संसारी जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा-एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय । एकेन्द्रिय जीव पाँच गतियों में पाँच गतियों से आकर उत्पन्न होते हैं । एकेन्दिय जीव एकेन्द्रियों में एके-न्द्रियों से यावत् पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होता है। एकेन्द्रिय एकेन्द्रियपन को छोड़कर एकेन्द्रिय रूप में यावत् पंचेन्द्रिय रूप में उत्पन्न होता है। द्वीन्द्रिय जीव पाँच स्थानों में पाँच स्थानों से आकर उत्पन्न होते हैं । द्वीन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों में यावत्पंचेन्द्रियों में आकर उत्पन्न होते हैं। .......त्रीन्द्रिय जीव पाँच स्थानों में पाँच स्थानों से आकर उत्पन्न होते हैं । त्रीन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में आकर उत्पन्न होते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 100
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy