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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५४८ जिसे अपारगसलिल-प्रवाह कहा गया है, उस गहन संसार को दुर्मोक्ष जानो । जिसमें विषय और अंगनाओं से परुष विषण्ण है और लोक में अनुसंचरण करते हैं। सूत्र - ५४९ अज्ञानी कर्म से कर्म-क्षय नहीं कर सकते । धीर अकर्म से कर्म का क्षय करते हैं । मेघावी पुरुष लोभ और मद से अतीत हैं । सन्तोषी पाप नहीं करते हैं। सूत्र - ५५० वे (सर्वज्ञ) लोक के अतीत, वर्तमान और अनागत के यथार्थ-ज्ञाता हैं । वे अनन्य संचालित/आत्मनियन्ता, बुद्ध एवं कृतान्त हैं अतः दूसरों के नेता हैं। सूत्र-५५१ __ हिंसा से उद्विग्न होने के कारण जीव जुगुप्सित होते हैं । न वे हिंसा करते हैं न करवाते हैं । वे धीर सदैव संयम की ओर झुके रहते हैं । कुछ लोग मात्र वाग्वीर होते हैं। सूत्र-५५२ जो लोक में बाल-वृद्ध सभी प्राणियों को आत्मवत देखता है, एवं इस महान लोक की अपेक्षा करता है वह बुद्ध अप्रमत्त पुरुषों में परिव्रजन करे । सूत्र-५५३ जो स्वतः या परतः जानकर स्वहित या परहित में समर्थ होता है, जो धर्म का अनुवेक्षण कर के प्रादुर्भाव करता है, उस ज्योतिर्भूत की सन्निधि में सदा रहना चाहिए। सूत्र -५५४ जो आत्मा, लोक, आगति, अनागति, शाश्वत, अशाश्वत, जन्म-मरण, च्यवन और उपपात को जानता है । सूत्र-५५५ जो प्राणियों के अंधो विवर्तन, आस्रव, संवर, दुःख और निर्जरा को जानता है, वही क्रिया-वाद का प्ररूपण कर सकता है। सूत्र -५५६ जो शब्दों, रूपों, रसों और गंधों में राग-द्वेष नहीं करता, जीवन और मरण की अभिकांक्षा नहीं करता, इन्द्रियों का संवर करता है वह इन्द्रियजयी परावर्तन से विमुक्त है। -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 49
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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