SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-१०-समाधि सूत्र-४७३ मतिमान् ने अनुचिन्तन कर जो ऋजु समाधि-धर्म प्रतिपादित किया है, उसे सूनो । समाधि-प्राप्त अप्रतिज्ञ और अनिदानभूत भिक्षु सम्यक् परिव्रजन करे । सूत्र -४७४ ऊर्ध्व, अधो और तिर्यग् दिशाओं में जितने भी त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उन्हें हस्त और पाद से संयमित कर अन्य द्वारा अदत्त पदार्थ ग्रहण न करे । सूत्र - ४७५ जो स्वाख्यातधर्मी एवं विचिकित्सातीर्ण है वह प्राणियों पर आत्मवत् व्यवहार कर लाढ़ देश में विचरण करे। जीवन के लिए आय न करे और सुतपस्वी भिक्षु संचय न करे । सूत्र -४७६ मुनि प्राणियों पर सर्व-इन्द्रियों से संयत तथा सर्वथा विप्रमुक्त होकर विचरण करे । पृथक्-पृथक् रूप से विषण्ण, दुःख से आर्त और परितप्त प्राणियों को देखे । सूत्र - ४७७ अज्ञानी जीवों को दुःखी करता हुआ पाप कर्मों में आवर्तन करता है । वह स्वयं अतिपातकर पापकर्म करता है व नियोजित होकर भी कर्म करता है। सूत्र -४७८ आदीनवृत्ति वाला भी पाप करता है, यह मानकर एकान्त समाधि का प्ररूपण किया । समाधि और विवेक रत पुरुष बुद्ध, प्राणातिपात-विरत एवं स्थितात्मा है। सूत्र -४७९ सर्व जगत् का समतानुप्रेक्षी किसी का भी प्रिय-अप्रिय न करे । दीन उठकर पुनः विषण्णा होता है । प्रशंसा कामी पूजा चाहता है । सूत्र - ४८० जो निष्प्रयोजन आधाकर्म आहार की ईच्छा से चर्या करता है, वह विषण्णता की एषणा करता है । स्त्रीआसक्त अज्ञानी परिग्रह का ही प्रवर्तन करता है। सूत्र-४८१ वैरानुगृद्ध पुरुष कर्म-निचय करता है । यहाँ से च्युत होकर वह दुःख रूप दूर्ग प्राप्त करता है । अतः मेघावी धर्म की समीक्षा कर सर्वतः विप्रमक्त हो विचरण करे । सूत्र - ४८२ लोक में जीवितार्थी आय न करे, अनासक्त होकर परिव्रजन करे । निशम्यभाषी और विनीतगद्ध हिंसान्वित कथा न करे। सूत्र-४८३ आधाकर्म की कामना न करे और न कामना करने वाले का संस्तव करे । अनुप्रेक्षक अनुप्रेक्षापूर्वक स्थूल शरीर के स्रोत को छोड़कर उसे कृश करे । सूत्र - ४८४ एकत्व की अभ्यर्थना करे, यही मोक्ष है, यह मिथ्या नहीं है । यह मोक्ष ही सत्य एवं श्रेष्ठ है, इसे देखो । जो अक्रोधी, सत्यरत एवं तपस्वी है (वह मोक्ष पाता है)। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 43
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy