SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ४५३ हे विज्ञ! अष्टापद(द्यूत आदि) मत सीखो, वेध आदि मत बनाओ । हस्तकर्म और विवाद को समझो/ त्यागो सूत्र-४५४ हे विज्ञ ! उपानह (जूता) छत्र, नालिका वालवीजन (पंखा), परक्रिया एवं अन्योन्य क्रिया को समझो / त्यागो। सूत्र - ४५५ मुनि हरित स्थान पर उच्चार-प्रस्रवण (मलमूत्र-विसर्जन) न करे तथा वनस्पति को इधर-उधर कर अचित्त जल से भी कदापि आचमन न करे । सूत्र-४५६ विज्ञ गहस्थ के पात्र में कभी भी आहार-पानी का सेवन न करे । अचेल (मुनि) परवस्त्र को भी समझे। त्यागे। सूत्र - ४५७ हे विज्ञ ! आसन्दी (कुर्सी), पलंग, गृहान्तर की शय्या, संप्रच्छन या स्मरण को समझो/त्यागो । सूत्र -४५८ यश, कीर्ति, श्लोक (प्रशंसा), वंदनपूजन और सम्पूर्ण लोक के जितने भी काम हैं, उन्हें समझो/त्यागो । सूत्र-४५९ हे प्रज्ञ ! यदि भिक्षु (गृहस्थ से) कार्य निष्पन्न कराए तो अनुप्रदाता के अन्नपान को समझे । सूत्र-४६० अनन्तज्ञानदर्शी, निर्ग्रन्थ महामुनि महावीर ने ऐसा श्रुतधर्म का उपदेश दिया। सूत्र-४६१ मुनि बोलता हआ भी मौनी रहे, मर्मवेधी वचन न बोले, मायावी स्थान का वर्जन करे, अनुवीक्षण कर बोले। सूत्र -४६२ ये तथ्य भाषाएं हैं जिन्हें बोलकर मनुष्य अनुतप्त होता है । जो क्षण बोलने योग्य नहीं है उस क्षण में नहीं बोलना चाहिए। सूत्र-४६३ मुनि होलावाद सखिवाद एवं गौत्रवाद न बोले । तू तू ऐसा अमनोज्ञ शब्द सर्वथा न कहे। सूत्र -४६४ साधु सदैव अकुशील (सुशील) रहे और संसर्ग न करे । यह विज्ञ अनकल उपसर्गों को भी समझे। सूत्र - ४६५ मुनि किसी अन्तराय/कारण के बिना गृहस्थ के घर में न बैठे । कामक्रीड़ा एवं कुमारक्रीड़ा न करे एवं अमर्यादित न हँसे। सूत्र - ४६६ मनोहर पदार्थों के प्रति अनुत्सुक रहे, यतनापूर्वक परिव्रजन करे । चर्या में अप्रमत्त रहे (उपसर्गों) से स्पृष्ट होने पर उन्हें सहन करे। सूत्र -४६७ हन्यमान अवस्था में भी क्रोध न करे, कुछ कहे जाने पर उत्तेजित न हो, प्रसन्न मन से सहन करे, कोलाहल न करे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 41 Page 41
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy