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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
सूत्र-४०७
(मुनि) अज्ञानपिण्ड की एकणा करे, सहन करे, तप से पूजा का आकांक्षी न बने । शब्दों और रूपों में अनासक्त रहे । सभी कामों से गृद्धि दूर करे । सूत्र-४०८
धीर भिक्षु सभी संसर्गों का त्याग कर, सभी दुःखों को सहन करता हुआ अखिल अगृद्ध अनिकेतचारी अभयंकर और निर्मल चित्त बने । सूत्र-४०९
___ मुनि (संयम) भार वहन करने के लिए भोजन करे । पाप के विवेक की ईच्छा करे, दुःख से स्पृष्ट होने पर शांत रहे और संग्रामशीर्ष की तरह कामनाओं को दमे । सूत्र-४१०
परीषहों से हन्यमान भिक्षु फलक की तरह शरीर कृश होने पर काल की आकांक्षा करता है । मैं ऐसा कहता हूँ कि वह कर्म-क्षय करने पर वैसे ही प्रपंच में/संसार में गति नहीं करता, जैसे धुरा टूटने पर गाड़ी नहीं चलती । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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