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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-३ - उपसर्गपरिज्ञा उद्देशक-१ सूत्र-१६५ कायर मनुष्य शिशुपाल की तरह स्वयं को तभी तक शूर एवं महारथ मानता है, जब तक युध्यमान दृढ़धर्मी विजेता कृष्ण को नहीं देख लेता। सूत्र - १६६, १६७ संग्राम में उपस्थित हो जाने पर शूरवीर रणशीर्ष हो जाते हैं । जिस प्रकार माता युद्धविक्षिप्त पुत्र को नहीं जानती है। इसी प्रकार भिक्षु-चर्या में अकोविद अपुष्ट साधक भी अपने आपको तभी तक शूरवीर मानता है जब तक वह रुक्ष संयम का सेवन नहीं कर लेता। सूत्र - १६८ जब हेमन्त माह में ठंडी हवा लगती है, तब मन्द पुरुष वैसे ही विषाद करते हैं जैसे राज्य से च्युत क्षत्रिय विषाद करता है। सूत्र-१६९ जब ग्रीष्म-ताप से स्पृष्ट होकर मनुष्य विमनस्क और पिपासित हो जाते हैं, तब वे वैसे ही विषाद करते हैं जैसे थोड़े जल में मछली विषाद करती है। सूत्र-१७० दत्तैषणा सदा दुःख है । याचना दुष्कर है । साधारण जन यह कहते हैं कि ये पाप-कर्म के फल भोग रहे हैं, अभागे हैं। सूत्र-१७१ गाँवों में या नगरों में इन शब्दों को सहन न करने वाले मंद मनुष्य वैसे ही विषाद को प्राप्त करता है, जैसे संग्राम में भयभीत पुरुष विषाद करता है। सूत्र - १७२ कोई क्रूर कुत्ता क्षुधित भिक्षु को काटता है, तो मूढ़ भिक्षु वैसे ही दुःखी होता है, जैसे अग्नि-स्पृष्ट होने पर प्राणी दुःखी होता है। सूत्र - १७३ प्रतिकूल पथ पर चलने वाले कुछ लोग बोलते हैं कि ये इस प्रकार का जीवन जीने वाले प्रतिकार करते हैं सूत्र - १७४ ___ कुछ लोग कहते हैं कि ये नग्न है, पिंडलोलक, अधम, मुण्डित, कण्डुक, विकृत अङ्गी, स्नानहीन और असमाहित है। सूत्र - १७५ उनमें जो अज्ञानी एवं विप्रतिपन्न हैं, वे मोह से विवेकमूढ़ होकर अन्धकार से गहन अन्धकारमें चले जाते हैं सूत्र - १७६ मुनि डांस-मच्छरों के काटने तथा तृण-स्पर्श न सहने के कारण सोचता है मैंने परलोक नहीं देखा है, अतः मृत्यु के अतिरिक्त और क्या होगा? सूत्र - १७७ केशलुंचन से संतप्त और ब्रह्मचर्य पालन से पराजित मंद मनुष्य वैसे ही विषाद को प्राप्त करता है जैसे जाल में फँसी मछलियाँ विषाद करती हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 18
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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