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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५५०
__कहा है-अपार सलिल-प्रवाह वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना दुस्तर है, वैसे ही संसाररूपी महासमुद्र को भी पार करना दुस्तर है । अतः इस संसार समुद्र के स्वरूप को जानकर उसका परित्याग कर दे । इस प्रकार पण्डित मुनि कर्मों का अन्त करने वाला कहलाता है। सूत्र- ५५१
मनुष्यों ने इस संसार के द्वारा जिस रूप से-प्रकृति-स्थिति आदि रूप से कर्म बांधे हैं, उसी प्रकार उन कर्मों का विमोक्ष भी बताया गया है । इस प्रकार जो विज्ञाता मुनि बन्ध और विमोक्ष का स्वरूप यथातथ्य रूप से जानता है, वह मुनि अवश्य ही संसार का या कर्मों का अंत करने वाला कहा गया है। सूत्र- ५५२
इस लोक, परलोक या दोनों लोकों में जिसका किंचिन्मात्र भी रागादि बन्धन नहीं है, तथा जो साधक निरालम्ब है, एवं जो कहीं भी प्रतिबद्ध नहीं है, वह साधु निश्चय ही संसार में गर्भादि के पर्यटन के प्रपंच से विमुक्त हो जाता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
चूलिका-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
श्रुतस्कन्ध-२ का हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(१)आचार-प्रथम अङ्गसूत्र का - मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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