________________
आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-१०-उच्चारप्रस्रवण-सप्तिका-३ सूत्र- ४९९
साधु या साध्वी को मल-मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे।
साधु या साध्वी ऐसी स्थण्डिल भूमि को जाने, जो कि अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन न करे। साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो प्राणी, बीज, यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन कर सकता है।
साधु या साध्वी यह जाने कि किसी भावुक गृहस्थ ने निर्ग्रन्थ निष्परिग्रही साधुओं को देने की प्रतिज्ञा से एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से, या बहुत से साधर्मिक साधुओं के उद्देश्य से, अथवा एक साधर्मिणी साध्वी के उद्देश्य से या बहुत-सी साधर्मिणी साध्वीओं के उद्देश्य से स्थण्डिल, अथवा बहुत-से श्रमण ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र या भिखारियों को गिन-गिनकर उनके उद्देश्य से समारम्भ करके स्थण्डिल बनाया है तो इस प्रकार का स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत, यावत् बाहर नीकाला हुआ हो, अथवा अन्य किसी उस प्रकार के दोष से युक्त स्थण्डिल हो तो वहाँ पर मल-मूत्र विसर्जन न करे।
यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो किसी गृहस्थ ने बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, दरिद्र, भिखारी या अतिथियों के उद्देश्य से समारम्भ करके औद्देशिक दोषयुक्त बनाया है, तो उस प्रकार के अपुरुषान्तरकृत यावत् काम में नहीं लिया गया हो तो उस में या अन्य किसी एषणादि दोष से युक्त स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे।
यदि वह यह जान ले कि पूर्वोक्त स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत यावत् अन्य लोगों द्वारा उपभुक्त है, और अन्य उस प्रकार के दोषों से रहित स्थण्डिल है तो साधु या साध्वी उस पर मल-मूत्र विसर्जन कर सकते हैं।
यदि इस प्रकार का स्थण्डिल जाने, जो निर्ग्रन्थ साधुओं को देने की प्रतिज्ञा से किसी ने बनाया है, बनवाया है या उधार लिया है, छप्पर छाया है या छत डाली है, उसे घिसकर सम किया है, कोमल, या चिकना बना दिया है, उसे लीपापोता है, संवारा है, धूप आदि से सुगन्धित किया है, अथवा अन्य भी इस प्रकार के आरम्भ-समारम्भ करके उसे तैयार किया है तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर वह मल-मूत्र विसर्जन न करे। सूत्र- ५००
साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जान कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत् हरी जिसके अंदर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उस प्रकार की किन्हीं सचित्त वस्तुओं को इधर-उधर कर रहे हैं, तो वहाँ साधु-साध्वी मल-मूत्र विसर्जन न करे । ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध पर, चौकी पर, मचान पर, ऊपर की मंजिल पर, अटारी पर या महल पर या अन्य किसी विषम या ऊंचे स्थान पर बना हुआ है तो वहाँ वह मलमूत्र विसर्जन न करे।
साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध पृथ्वी पर, सचित्त रज से लिप्त या संसृष्ट पृथ्वी पर सचित्त मिट्टी से बनाई हुई जगह पर, सचित्त शिला पर, सचित्त पथ्थर के टुकड़ों पर, घुन लगे हुए काष्ठ पर या दीमक आदि द्वीन्द्रियादि जीवों से अधिष्ठित काष्ठ पर या मकड़ी के जालों से युक्त है तो वहाँ मल-मूत्र विसर्जन न करे । यदि ऐसे स्थण्डिल के सम्बन्ध में जाने कि यहाँ पर गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्रों ने कंद, मूल यावत् बीज आदि इधर-उधर फैंके हैं या फेंक रहे हैं, अथवा फैकेंगे, तो ऐसे अथवा इसी प्रकार के अन्य किसी दोषयुक्त स्थण्डिल में मलमूत्रादि का त्याग न करे।
साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल के सम्बन्ध में जाने कि यहाँ पर गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्रों ने शाली, व्रीहि, मूंग, उड़द, तिल, कुलत्थ, जौ और ज्वार आदि बोए हुए हैं, बो रहे हैं या बोएंगे, ऐसे अथवा अन्य इसी प्रकार के बीज बोए स्थण्डिल में मल-मूत्रादि का विसर्जन न करे । यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ कचरे के ढेर हों, भूमि फटी हुई या पोली हो, भूमि पर रेखाएं पड़ी हुई हों, कीचड़ हों, ढूँठ अथवा खीले गाड़े हुए हों, किले की दीवार या प्राकार आदि हो, सम
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 105