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जाव पज्जोसर्विति ॥ २२९॥ जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसर्विति तहा णं अम्हं पि आयरियउवज्झाया वासाणं सवीसइराए मासे विइकते वासावासं पज्जोसवेति ॥ २३०॥ जहा णं अम्हं आयरियउवज्झाया वासाणं जाव पज्जोसवेंति तहा णं अम्हे वि अजो! वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसवेमो। अंतरा वि य से कप्पइ पज्जोसवित्तए नो से कप्पइ तं रयणि उवायणावित्तए ॥२३१॥
- वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंधाण वा निरगंथीण वा सवओ समंता सकोसं जोयणं उग्गहं ओगिम्हित्ता णं चिट्टिउं अहालंदमवि उम्गहे ॥२३२॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पद निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सबओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पैडियत्तए। जत्थ णं नई निचोयगा निचसंदणा नो से कप्पइ सबओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडियत्तए । एरवईए कुणालाए जत्थ चकिया एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवं चकिया एवं णं कप्पइ सवओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडियत्तए, एवं नो चकिया एवं णं नो कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोवणं गंतु पेडिनियत्तए ॥ २३३ ।। .
वासावासं पज्जोसविताणं अत्यंगतियाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ 'दावे भंते!' एवं से कप्पइ दावित्तए नो से कप्पइ पडिगाहितए ॥ २३४॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगईयाणं एवं वुत्तपुब्वं भवइ ‘पडिगाहे भंते!' एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए नो से कप्पड़ दावित्तए ॥२३५॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगईयाणं एवं
१ डिसए अहा ॥ २ परिपतप ग-च। एक्मनेऽपि ॥ ३ वह ख-घ॥ ४ या
सिया पग ग|
परिपतप ख-ग। पडियत्तए घ-च॥
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