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उपसंहार
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सुन कर विभक्ति रूप में अवस्थित भिक्षु बड़े ही प्रसन्न हुए ।
जिस प्रकार वर्षा की शातल बूँदों से कदम्ब के फूल खिल जाते
हैं, उसी प्रकार मुनियों के हृदय विकसित हो गए। विभक्ति सम्बन्धी समग्र अज्ञानता दूर हो गई और ज्ञान का प्रकाश अन्तहृदय में जगमगाने लगा । तदनन्तर सातों ही विभक्ति स्वरूप मुनि भगवान् के चरणों में विधिपूर्वक वन्दना नमस्कार करके एकान्त स्थान में चले गए और विभक्ति सम्बन्धी श्रुतज्ञान की आराधना में तथा अन्य तपश्चरण में संलग्न होकर अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।
उपसंहार
विभक्ति-संवाद लिखने का अभिप्राय यह है कि प्रस्तुत विषय के जिज्ञासु विद्यार्थी विभक्तियों के गंभीर ज्ञान को अपने अन्तहृदय में लीन करने का प्रयत्न करे। जिस प्रकार नगरादि के अनेकानेक दृश्य हृत्पट पर अंकित हो जाते हैं, दोपकों की प्रभा एक दूसरी में लीन हो जाती है, लीन हो जाती है, दूध में मिश्री लीन हो जाती है, उसी प्रकार उक्त विभक्ति ज्ञान को भी अन्तर्लोन करना चाहिए। जो सज्जन विभक्ति ज्ञान प्राप्त कर सम्यकश्रुत का अध्ययन करेंगे, वे सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र में लीन होकर शाश्वत सुखों के अधिकारी बनेंगे ।
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