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विभक्ति संवाद
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घादि धातुओं से युक्त प्रयोज्य अर्थ में वर्तमान शब्द से चतुर्थी होती है ।
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रुच्यर्थक" धातुओं से युक्त प्रेय में, क्लृप्यर्थक धातुओं से युक्त विकार में और धारी से युक्त उत्तमर्ण में वर्तमान शब्द से भी चतुर्थी विभक्ति होती है ।
संसार में जितने भी उत्पात " होते हैं, उन सब की ज्ञापिका मैं ही हूँ। मेरा कितना परोपकार है, मैं पहले ही उत्पातों के सम्बन्ध में ख़तरे की घंटी बजा देती हूँ । यदि मैं न होऊँ तो भविष्य में होनेवाले उत्पातों का संसार को पता कैसे चले ? साहित्य में जहाँ भी कहीं इस प्रकार के प्रयोग हैं, वहाँ मुझे याद
३७ श्लाघहनुङ, स्थाशपां प्रयोज्ये ॥ १।३।१४८ ॥
श्लाघादिभिर्युक्ते प्रयोज्ये वर्तमानाच्चतुर्थी भवति । देवदत्ताय श्लाघते । स्वगुणादिकं धर्मं विज्ञापयितुमिच्छति इत्यर्थः । चैत्राय हुनुते, छात्रेभ्यः तिष्ठते, मैत्राय शपते ।
३८ रुचिक्लृप्यर्थधारिभिः प्रेयविकारोत्तमर्णेषु ॥ १।३।१४३ ॥
रुच्यर्थैर्धातुभिर्युक्ते प्रेये, क्लृप्यर्थैर्विकारे, धारिणा च उत्तमर्णे वर्तमानाचतुर्थी भवति । साधवे रोचते धर्मः । सुदृशे स्वदते तत्त्वम् । श्लेष्मणे कल्पते दधि । बन्धाय जायते रागः । चैत्राय शतं धारयते मैत्रः ।
३९ उत्पातेन ज्ञाप्ये ॥ १ । ३ । १४७ ॥
उत्पातेन ज्ञाप्ये वर्तमानाद् ङे भ्यां भ्यसो भवन्ति । श्लोकः-
वाताय कपिला विद्युदातपायातिलोहिनी ।
पीता वर्षाय विज्ञेया दुर्भिक्षाय सिता भवेत् ॥ वाताय ज्ञापयतीत्यर्थः ।
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