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पूर्वरङ्ग पाकर साधु तथा साध्वियों को बुलाया और कहा कि-"हे आर्यो ! आज मैं तुम्हें वचन-विभक्तियों के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातें बताना चाहता हूँ। जब तक मनुष्य वचन-विभक्तियों का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं कर लेता तब तक वह अपनी भाषण शक्ति में शब्द-सौन्दर्य तथा भाव-गम्भीरता पैदा नहीं कर सकता। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि विभक्ति सम्बन्धी अज्ञानता के कारण वक्ता और श्रोता दोनों ही अर्थ का अनर्थ भी कर डालते हैं। अतएव अहिंसा तथा सत्य के उपासकों का कर्तव्य है कि वे विभक्ति सम्बन्धी ज्ञान अवश्य प्राप्त करें । अस्तु, मैं इस सम्बन्ध में जो कुछ भी कहूँ तुम उसे ध्यानपूर्वक सुनो।"
साधु तथा साध्वियों ने भगवान के श्रीमुख से ज्यों ही यह सुना त्यों ही सब के सब हर्ष से प्रफुल्लित हो गए। जिस प्रकार मेघ की गर्जना सुनकर मयूर नाच उठता है, उसी प्रकार उन जिज्ञासुओं के हृदय भी भगवान के उक्त वचन सुनकर नाच उठे। साधु तथा साध्वियों ने भगवान् के चरण-कमलों में विधिपूर्वक वन्दना (नमस्कार) की, और सब यथास्थान सावधान होकर बैठ गए । प्रत्येक के मस्तिष्क में यही एक कल्पना चक्कर काट रही थी कि अब भगवान् न जाने कौनसा अभिनव ज्ञानोपदेश सुनाएँगे । विभक्ति ज्ञान के सम्बन्ध में हमें न जाने क्या अभिनव सन्देश मिलेगा।
जब श्रमण भगवान् महावीर वचन-विभक्तियों का वर्णन करने लगे तो सात मुनि एकएक विभक्ति का पक्ष लेकर भगवान से प्रार्थना करने लगे-पहले मेरा वर्णन होना
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