________________
नमोत्थुणं समणस्स भगवभो महावीरस्स
पूर्वरङ्ग
सावन का महीना है। आकाश में चारों ओर घनघोर घटाएँ उमड़ रही हैं। मेघ की गम्भीर गर्जना से दसों दिशाएँ मुखरित हो रही है। शीतल, मन्द पवन के झोंके आ रहे हैं। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के प्रचण्ड ताप से उत्तप्त भूमि अविच्छिन्न जलधारा के द्वारा शान्त हो चुकी है। प्रकृति-नटी वर्षा ऋतु का नवीन परिधान पहन कर विश्व के रङ्गमञ्च पर एक नया खेल खेलने में प्रवृत्त है!
चम्पा नगरी का पूर्णभद्र-उद्यान आज अभिनव सौन्दर्य से सुशोभित है। प्रत्येक वृक्ष अपूर्व शोभा को धारण किए हुए है। वैद्यराज मेघ ने जलधारा से सिंचन कर मानों वृक्षों का काया
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com