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________________ सूर्यसिद्धान्तकी-भूमिका । ५ अध्यायमें-चन्द्रलम्बन, अवनति (सूर्यग्रहण ) है । ६ अध्यायमें-परिलेखाधिकार है। ७ अध्यायमें-ग्रहयुत्यधिकार, अक्ष-दृक्कर्म अयन-दृकर्म, ग्रहविम्ब । ग्रहदर्शन युद्ध हैं। ८ अध्यायमें-नक्षत्रग्रह युत्यधिकार, नक्षत्रों के स्थान हैं। ० अध्यायमें-उदयास्ताधिकार, कालनिर्णय, कालांश हैं। १० अध्यायमें-शृंगोन्नति, चन्द्रोदय । ११ अध्यायमें-पाताधिकार, व्यतिपात, कालनिर्णय, गण्डक, भसन्धिः । सूर्यसिद्धांतकी-भूमिका । १२ अध्यायमें-अध्यात्मविद्या, कक्षास्थिति, मेरु, भद्राश्व, यमकोटी, लंका, केतुमालधुवनक्षत्रकी पृथ्वीसे दूरी है । १३ अध्यायमें-गोल और यंत्रादि वनाना हैं । १४ अध्यायमें-कालानर्णय है । त्रिज्या ( Radus ) धनु ( Aae ), ज्या ( Sine ), कोटी ( Cosine ) कर्ण (Hy, Poteneuse ) आदि कई एक त्रिकोण मितिके शब्दोंका व्यवहार निरन्तर हुआ है इस कारण इनको पहलेहीसे जान रखना चाहिये । लम्ब विषुवच्छाया आदि अपने २ देशके अक्षांशसे निर्णीत होते हैं । विक्षेप (Latitude) क्रान्ति (Declination) स्फुट आदिग्रहोंके अवस्थिति करके हैं । मध्य, मन्दोच्च, शीघ्र, परिधि आदि स्पष्टादि लानेके प्रकरण हैं। राशिचन्द्रका जो बिन्दु मध्यरेखाके परे स्थित हो, सो दशम और उदयगत लग्न है, त्रिप्रश्नाध्यायमें किस प्रकारसे दिक् और कालका निर्णय करना चाहिये, और पश्चात् यंत्राध्यायमें यंत्रके वनानेकी रीतिको दिखाय मानमान्दरके वनानेका उपदेश दिया है । भूमिकाको समाप्त करनेसे पहले सर्वोपमोपमेय, गुणिजनमंडलीमंडन पाखण्डमत खण्डन, श्रीमान् पं०ज्वालाप्रसाद मिश्र व श्रीमान् श्रीविमलाप्रसाद सिद्धान्तसरस्वतीजीको वारम्बार धन्यगद दियाजाता है, क्योंकि उपरोक्त महाशयोंके द्वारा इस ग्रंथके अनुवादमें बडी सहायता मिली है, पाठार्थियोंके लाभार्थ इस पुस्तकमें योग्य व उचित उदाहरणभी दिये हैं । अलमातिविस्तरेण । सुखानंदमिश्रात्मजसंवत् १९५२ विक्रमी। बलदेवप्रसाद मिश्र, चैत्रकष्ण २ रविवार र मोहल्ला दीनदारपुरा मुराराबाद. पश्चिमोत्तर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034621
Book TitleSurya Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaldevprasad Mishra
PublisherGangavishnu Krishnadas
Publication Year1924
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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