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________________ उदाहरणम् । (२४७) ५। २० । ७ । ८ में मेषादि केन्द्रहेतु योग करनेसे ६।५।२१ । १३ यह द्वितीय मन्दस्पष्ट शनि हुआ। शनिशीघ्र ११ । २९ । १५ । ४२ से मन्द स्पष्ट शनि ६ । ५। २१ । १३ हीन करनेसे शेष ५ । २३ । ५४ । २९ शीघ्रकेन्द्र हुआ । इससे ३ राशिहोन करके कला बनाय २२५ से भाग करके मागफल २२ के अनुसार ज्या ३४०९ और ज्यान्तर २२ से अवशिष्ट ८४ । २९ का अनुपातद्वारा लब्ध ८।१५ ग्रहणकरके ज्या ३४०९ में युक्त करनेसे ३४१७ । १५ हुए । युग्म पात होनेसे गत ज्या कोटीज्या हुई । गम्य ३।६।५।२५ । भुजकी ज्या बनानेसे २६० । २३ भुजज्या हुई । इसको त्रिज्यासे भाग करने पर कला ६ । २१ हुई । शीघ्रपरिधिमें संस्कार करनेसे ३९ । ६ । २१ शुद्ध परिधि हुई । चतुर्थ शीघ्रभुजज्याको शुद्ध परिधिसे गुणकरके ३६० से भाग करनेपर लब्ध ३९ । ३५ कला विकला चतुर्थ शीघ्रभुजफल हुआ । कोटोज्याको शुद्ध परिधिसे गुणकरके ३६० से भाग करनेपर ३७१ । १३ हुए। कर्कादि केन्द्र होनेसे त्रिज्या ३४३८ से वियोग करनेपर ३०६६। ४७ चतुर्थ शीघ्रकोटी फल हुमा । शीघ्रभुजफल वर्ग और शीघ्रकोटी फल वर्गके पोग फलका मूल निकालनेसे ३०६८ कला शीघ्रकर्ण हुआ । शीघ्रभुज फलको त्रिज्यासे गुणकरके इस शीघ्रकर्णसे भाग करनेपर कलादि ४४ । २२ हुए, इसके धनु और कला ४४ । २२ शीघ्रफल हुआ (यही चौथा संस्कार है ) शनिमन्दस्पष्टम मेषादि केन्द्र होनेसे युक्त करने पर ६ । ६ । ५ । ३५ शनिस्फुट हुआ। ___ ग्रहगति । (२ अ० ४७-५३ श्लो.) सर्यके मन्दसंस्कारमें ५१ कला दोतिर है। उसको रविभुक्ति मध्य ५९ । ८ से गुणाकरके २२५ से भाग करने पर कला १३ । २४ विकला हुई । इसको शुद्ध स्फुट परिधि १३ । ४० । २६ से गुणाकरक ३६० से भाग करने पर ३० विकला हुई। यह मकरादि केन्द्रके वशस मध्यभुक्ति ५९ । ८ से वियोग करने पर ५८ । ३८ सूर्यकी स्पष्ट गति हुई । चन्द्रग्रहण । (४ अ० १७ आदिश्लो० ) सूर्य व्यासयोजन ६५०० सूर्यकी स्पष्ट गति ६० कलासे गुणा करके सूर्यको मध्य भुक्ति ५९ । ८ से भाग करनेपर ६५९९ योजन रविस्पष्ट व्यास हुआ। चन्द्र व्यास योजन ४८० को चन्द्र स्पष्टगति ८६० कलासे गुणाकरके चन्द्र मध्य भुक्ति ७९० । ३८ से भाग करनेपर ५२२ योजन चन्द्रव्यास और १५ से भाग करनेपर ३५ कला चन्द्र स्पष्ट व्यास हुआ । महीव्यास १६०० को चन्द्र स्पष्टगति ८६० से गुणा करके चंद्र मध्य भुक्तिसे भाग करनेपर लब्ध १७४० सूची हुई । रवि स्पष्ट व्यास ६५९९ से मही व्यास १६०० अलग करके चन्द्रमध्य व्यास ४८० से गुणा करके सर्यमध्यव्यास ६५०० से भाग करने पर ३६९ हुआ। इसको सूचीसे वियोग करनेपर १३७१ छायाव्यास और १५ से भाग करनेपर ९१ छायाव्यासकला हुआ। चन्द्रस्पष्ट । २०१९ से राहुस्फुट ०।१५।६ अलग करनेपर ०।५।३ हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034621
Book TitleSurya Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaldevprasad Mishra
PublisherGangavishnu Krishnadas
Publication Year1924
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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