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प्रथम स्तबेक ]
भाषानुवादसहिता
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अपरे त्विदमाकारा वृत्तिर्नाऽस्त्येव रूप्यधीभिन्ना । तस्याः कथमावरणाभिभावकत्वप्रसङ्ग इत्याहुः ॥१०३ ॥ इतरे त्वेकैवेदंवृत्तिर्धमहेतुरन्यवैफल्यात् । अध्यस्तं त्विह रूप्यं साक्षिप्रतिभास्यमित्याहुः ॥१०४ ॥ ज्ञानद्वयमिति पक्षे त्विदमिति वृत्तिधमे हेतुः । अन्येदं रजतमिति स्यादिदमध्यस्तगोचरेत्येके ॥ १०५॥
कारवृत्त्याऽऽवरणांशनाशेऽपि विक्षेपांशानिवृत्त्या तत्सहितेदमंशाज्ञानाद्रजताध्यासोपपत्तिरिति मतान्तरमाह-अन्ये विति ॥ १०२ ॥
इदं रूप्यमिति विशिष्टगोचरैव वृत्तिर्दोषादिसहकृतेन्द्रियसंपयोगादुत्पद्यते, न तव्यतिरेकेणेदमाकारा वृत्तिरस्ति । तस्या आवरणाभिभावकत्वप्रसङ्गो निरालम्बन इति कवितार्किकचक्रवर्तिमतमाह-अपरे त्विति ॥ १०३ ॥
अधिष्ठानज्ञानस्याऽध्यासकारणत्वाद्रूप्याध्यासकारणमिदमाकारा वृत्तिरेकैव । न त्वन्या रूप्याकारा, प्रयोजनाभावात् । रूप्यभानं तु इदंवृत्त्यभिव्यक्तसाक्षिचैतन्येनैवोपपद्यत इति मन्यमानानां मतमाह-इतरे त्विति ॥ १०४ ॥
ज्ञानद्वयानीकारपक्षे रजताध्यासहेतुभूतेदवृत्तिरेका, अन्या तु इदमध्यस्तरजतो
इसके इदमाकार वृत्तिसे आवरणांशका नाश होनेपर भी विक्षेपांशकी निवृत्ति न होनेसे तादृश विक्षेपांशसे उपहित इदमंशाज्ञानसे रजताध्यासकी उपपत्ति हो सकती है, ऐसा अन्य कहते हैं ।। १०२॥
__ 'अपरे' इत्यादि । अपर मतवालेका कहना है कि 'इदं रजतम्' ( यह रूप्य है) ऐसी विशिष्टगोचर वृत्ति ही दोषादिसहकृत इन्द्रियके सम्प्रयोगसे उत्पन्न होती है, इससे अतिरिक्त इदमाकारा कोई वृत्ति है ही नहीं, तो फिर इस वृत्तिमें आवरणाभिभावकत्वके कथनका प्रसंग कहाँ रहा ? ऐसा कवितार्किकचक्रवर्ती नृसिंहभट्टाचार्यका मत है ॥ १०३ ॥
अधिष्ठानज्ञान अध्यासमें कारण माना जाता है, अतः इदमाकारा एक ही वृत्ति रूप्याध्यासकी कारण बनती है; अन्य रूप्याकारा नहीं होती, क्योंकि उसका प्रकृतमें प्रयोजन नहीं है । यहाँ रूप्यभान तो इदमाकारवृत्तिसे अभिव्यक्त साक्षिचैतन्यसे ही उपपन्न होता है, ऐसा कई एकका मत है ॥ १०४ ॥ ___ इसमें जो दो ज्ञानोंको माननेवाले हैं, उनके पक्ष में तो भ्रममें हेतु अर्थात् रजता
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