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सिद्धान्तकल्पवल्ली
[ ब्रह्माकारवृत्तिनाशकवाद
वाक्योद्भवैव वृत्तिः स्वरूपसम्बन्धभेदेन । ब्रह्माज्ञानं क्षपयेन तु चाक्षुषवृत्तिरित्यपरे ॥ २३ ॥ अथ निजहेतुमविद्यां विद्या विनिवर्तयेत्कथं नाम । इह केचन वेणूत्थितवहिज्वालेव घेणुमित्याहुः ॥ २४ ॥
१०. ब्रह्माकारवृत्तिनाशकवादः अज्ञानोन्मूलनकं ज्ञानं वृत्त्यात्मकं कथं नश्येत् । अत्राऽऽहुः कतकरजोन्यायात्स्वयमेव नश्यतीत्येके ॥ २५ ॥
mmmmmramm प्रत्यग्ब्रह्माभेदगोचरा 'तत्त्वमसि' इत्यादिवाक्यजन्यैव वृत्तिः पदार्थशोधनासहितस्वरूपसम्बन्धविशेषेण तदभेदगोचरं मूलाज्ञानं निवर्तयेत् , न तु चाक्षुषवृत्चिरिति मतान्तरमाह-वाक्येति ॥ २३ ॥
ननु प्रत्यगभिन्नब्रक्षाकारा वृत्तिः स्वहेतुभूतामविद्या कथं निवर्तयेदित्याशय नाऽयं नियमः, साक्षाद्वेणुजन्याया अप्यमिज्वालायास्तद्विरोधित्वदर्शनादिति परिहरति—अथेति । घटादिज्ञानेषु समानविषयकाज्ञानबाधकत्वस्य क्लप्तत्वाचेति भावः ॥ २४ ॥
ननु स्वकार्याविद्यानिवर्तकवृत्तेः केन निवृत्तिः ! वृत्त्यन्तरेणेति चेदनवस्था ।
'वाक्योद्भवैव' इत्यादि । प्रत्यगात्मा और ब्रह्मके अभेदको विषय करने वाली 'तत्त्वमसि' (वह तू है) इत्यादि वाक्यजन्य वृत्ति ही स्वरूपसम्बन्धविशेषसे उसके अभेदको विषय करनेवाले मूलाज्ञानको निवृत्त करती है, चाक्षुष वृत्ति मूलाझानको निवृत्त नहीं करती, ऐसा अन्य मानते हैं ॥ २३ ॥
'अर्थ' इत्यादि । यदि शङ्का हो कि प्रत्यगभिन्न-ब्रह्माकार जो वृत्ति है, वह अपने हेतुभूत अविद्याको कैसे निवृत्त करेगी ? तो समाधान करते हैं ऐसा कोई नियम नहीं है कि कार्य अपने हेतुकी निवृत्तिका निमित्त नहीं होता, क्योंकि साक्षात् वेणुसंघर्षसे उत्पन्न हुई अमिकी ज्वाला अपने कारण वेणुको भी जलाती है। और घटदिज्ञानमें समानविषयक अज्ञानबाधकत्व क्लृप्त भी है ॥ २४ ॥ ___'अज्ञानो' इत्यादि । अविद्यानिवर्तक स्वकार्यभूत वृत्तिकी निवृत्ति किससे होगी ? यदि उसकी निवर्शक दूसरी वृत्ति मानोगे, तो फिर उसकी निवृचिके लिए वृत्त्यन्तर माननेसे अनवस्था होगी। यदि इस चरमवृत्तिकी निवृत्ति न मानो, तो द्वैतापत्ति होगी,
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